टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ इसका एक दूसरा पाठ इस प्रकार है:-
जाओ हरि निरमोहड़ा रे, जाणी थाँरी प्रीत ।।टेक।।
लगन लगी जब और प्रीतछी, अब कुछ अँवली रीत ।
अमृत पाय विषै क्यूं दीजै, कौण गाँव की रीत ।
मीरा कहे प्रभु गिरधर नागर, आप गरज के मीत ।। - ↑ निरमोहिया = निर्मोही, ममताहीन। जाणी = जान गई, जानली। जादि = जब। ही = थी। औरि = दूसरी। रीति = प्रकार की। पाइ = पिलाकर। कूण = कौन से। गरज = स्वार्थ।
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज