जावो निरमोहिया जाणो तेरी प्रीत -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

Prev.png
उपालंभ



जावो[1] निरमोहिया जाणो तेरी प्रीत ।।टेक।।
लगन लगी जदि प्रीत और ही, अब कुछ औरि ही रीति ।
इमरत पाइ के बिष क्‍यूँ दीजै, कूँण गाँव की रीति ।
मीराँ के प्रभु हरि अविनासी, अपणी गरज के मीत ।।60।।[2]

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. इसका एक दूसरा पाठ इस प्रकार है:-
    जाओ हरि निरमोहड़ा रे, जाणी थाँरी प्रीत ।।टेक।।
    लगन लगी जब और प्रीतछी, अब कुछ अँवली रीत ।
    अमृत पाय विषै क्‍यूं दीजै, कौण गाँव की रीत ।
    मीरा कहे प्रभु गिरधर नागर, आप गरज के मीत ।।
  2. निरमोहिया = निर्मोही, ममताहीन। जाणी = जान गई, जानली। जादि = जब। ही = थी। औरि = दूसरी। रीति = प्रकार की। पाइ = पिलाकर। कूण = कौन से। गरज = स्वार्थ।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः