जागो बंसीवारे ललना -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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राग प्रभाती





जागो बंसीवारे ललना, जागो मोरे प्यारे ।। टेक ।।
रजनी बीती भोर भायो है, घर घर खुले कि‍ंवारे ।
गोपी दही मथत सुनियत है, कँगना के झनकारे ।
उठो लाल जी भोर भयो है, सुर नर ठाढ़े द्वारे ।
ग्वाल बाल सब करत कुलाहल, जय जय सबद उचारे ।
माखन रोटी हाथ में लीनी, गउवन के रखवारे ।
मीरां के प्रभु गिरधर नागर, सरण आयां कूं तारे ।।168।।[1]




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ललना = लाल। मथत = मथते समय। सुनियत है = सुनाई देते हैं। झनकारे = झनकारे, ध्वनि। उचारे = उच्चारण करते हुए। तरण आयाँ कूँ = तरने के लिए आये हुए भक्तों को। तारे तारते हैं।

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