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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर
अथ द्वितीय सन्दर्भ
2. गीतम्
अमल-कमल-दललोचन! भव मोचन! अनुवाद- हे देव! हे हरे! हे निर्मल कमलदल के समान विशाल नेत्रों वाले, भव-दु:ख मोचन करने वाले, त्रिभुवनरूपभवन के आधार स्वरूप, आपकी जय हो, जय हो ॥5॥ पद्यानुवाद बालबोधिनी- पाँचवें पद्य में श्रीकृष्ण के धीरोदात्त गुण को अभिव्यक्त कर रहे हैं। अमल-कमल-दललोचन अमले ये कमलदले ते इव लोचने यस्या सौ तथाविध: तत्र सम्बुद्धौ अर्थात्र जिनके नेत्र अमल कमल दल के समान निर्मल हैं। नेत्रयुगल सभी के तापों का प्रशमनकर चित्त, मन और प्राणों का हरण कर लेते हैं भवमोचन, सभी भक्तों के संसार बन्धन का मोचन करते हैं, जीवों की रक्षा करते हैं। इस पद से भगवान का कारुण्य भी द्योतित हो रहा है। त्रिभुवन-भवन-निधान श्रीहरि त्रिलोक्यव्यापक हैं, वे त्रिलोक्यरूपी भवन के निधिस्वरूप हैं, कारण हैं, जनक हैं इस तरह आपमें विनयीत्व गुण का प्रकाश होता है। आपकी जय हो। धीरोदात्त-गम्भीर, विनयी, क्षमाशील, करुण, सुहृदव्रती, अकथ्य कथनकारी, गुण गर्वीले तथा महान् सत्यपरायण आदि धीरोदात्त के गुण श्रीकृष्ण में विद्यमान हैं ॥5॥
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अन्वय- [सर्वतापोपशमनपूर्वकसर्वाभीष्टप्रदतया देवसहायक-रूपेण धीरोदात्तमाह] हे अमलकमलदललोचन; (प्रफुल्लपद्मपत्रे इवलोचने यस्य, हे तादृश) [एतेन तापशमकत्वम्] हे भवमोचन; (संसारक्लेशहर) [एतेन करुणत्वं] हे त्रिभुवन- भवननिधान (त्रिभुवनमेव भवनं गृहं तस्य निधानं निधिरिव अमूल्यरत्नमित्यर्थ:, तत्सम्बुद्धौ [एतेन विनयित्वम्] हे देव, हरे, जय जय। ["गम्भीरो विनयी क्षन्ता करुण: सुदृढ़व्रत:। अकत्थनो गूढ़गर्वो धीरोदात्त: सुसत्त्वभृत्"] ॥5॥
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