विषय सूची
श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर
अथ प्रथम सन्दर्भ
अष्टपदी
1. गीतम्
निन्दे यज्ञ नियम श्रुति-मगके, बालबोधिनी - नवें पद में भगवान के बुद्धवतार की स्तुति की जा रही है। वेद श्रीभगवान के श्वासस्वरूप हैं 'तस्य नि:श्वसितं वेदा:'। वेदों को स्वयं भगवान की आज्ञास्वरूप माना जाता है। वेद शास्त्रों में जब विरोधी मत अर्थात वेदों के विरुद्ध विचार धाराएँ बढ़ने लगीं, तब आपने बुद्धवतार ग्रहण किया। यह प्रश्न होता है कि स्वयं यज्ञ विधि को बनाकर फिर यज्ञ विधायिका श्रुतियों की क्यों निन्दा की? अत्यन्त आश्चर्य की बात है कि स्वयं ही वेदों के प्रकाशक हैं और स्वयं ही वेदों की भर्त्सना कर रहे हैं। इसके उत्तर में 'सदय हृदय दर्शित पशुघातम्' अर्थात् आपने पशुओं के प्रति दयावान होकर अहिंसा परमो धर्म:, यह उपदेश प्रदानकर दैत्यों को मोहित किया है। आपने जैसे अमृत की रक्षा करने के लिए दैत्यों को मोहित किया था, उसी प्रकार प्राणियों की रक्षा करने के लिए आपने दैत्यों को मोहित कर यज्ञों को अनुचित बतलाया है। यज्ञ में की जाने वाली पशुओं की हिंसा को देखकर श्रीभगवान के हृदय में दया प्रसूत हुई और दया विवश होकर अपने इस अवतार में यज्ञ प्रतिपादक वेद शास्त्रों की निन्दा की। इस पद के नायक धीर शान्त हैं। भगवान बुद्ध को शान्त रस का अधिष्ठाता माना गया है ॥9॥ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
सर्ग | नाम | पृष्ठ संख्या |