बालबोधिनी- श्रीभोजदेव और श्रीरामादेवी (श्रीराधा देवी) के पुत्र श्रीजयदेव ने भगवान के प्रिय भक्तों पराशर आदि प्रिय मित्रों के कण्ठ में मुखरित विभूषित होने के लिए और प्रखरित होकर गगन में अनुगुंजित होने के लिए इस पदावली की रचना की है। रसरूप श्रीकृष्ण के स्मरण में अनोखे लीला-चित्र भक्त हृदयों में सदैव सुशोभित होते रहें, प्रिय-प्रियतर-प्रियतम-प्राण सर्वस्व बन जावें।