गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 456

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

एकादश: सर्ग:
सामोद-दामोदर:

द्वाविंश: सन्दर्भ:

22. गीतम्

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बालबोधिनी- नन्दपुत्र श्रीगोपाल एवं श्रीराधा का मिलन हुआ। इस मिलन से श्रीकृष्ण अतिशय आनन्द से परिपूर्ण हो गये और धीरे-धीरे श्रीराधा को अपनी बाहों के विवर में भर लिया। श्रीराधा शिरीष कुसुमों से भी बहुत अधिक सुकोमल हैं, इसलिए उन्हें बहुत कोमलता के साथ गले लगाया। पुन: अत्यन्त प्रीतिपूर्वक श्रीराधा का गाढ़ आलिंगन किया। यहाँ 'दृढं पीडयन्' इस पद से श्रीकृष्ण का अतिशय अनुराग प्रकट हो रहा है। पुन: अपनी ग्रीवा को वलायित करके उन्हें देखने लगे कि कहीं श्रीराधा के तुंग उरोज उनकी पीठ को भेदकर बाहर न निकल जायें। इस प्रसंग में श्रीराधा के उरोज पृष्ठ का काठिन्य एवं तीक्ष्णत्व अभिव्यक्त हो रहा है। यहाँ श्रीराधा की प्राकृतिक रूप से अति रमणीयता एवं सौकुमार्यता निदर्शित हुई है- वे फूलों से भी अधिक कोमल है।

प्रस्तुत श्लोक में श्रृंगार रस, वैदर्भी रीति एवं प्रसाद गुण है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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