बालबोधिनी- नन्दपुत्र श्रीगोपाल एवं श्रीराधा का मिलन हुआ। इस मिलन से श्रीकृष्ण अतिशय आनन्द से परिपूर्ण हो गये और धीरे-धीरे श्रीराधा को अपनी बाहों के विवर में भर लिया। श्रीराधा शिरीष कुसुमों से भी बहुत अधिक सुकोमल हैं, इसलिए उन्हें बहुत कोमलता के साथ गले लगाया। पुन: अत्यन्त प्रीतिपूर्वक श्रीराधा का गाढ़ आलिंगन किया। यहाँ 'दृढं पीडयन्' इस पद से श्रीकृष्ण का अतिशय अनुराग प्रकट हो रहा है। पुन: अपनी ग्रीवा को वलायित करके उन्हें देखने लगे कि कहीं श्रीराधा के तुंग उरोज उनकी पीठ को भेदकर बाहर न निकल जायें। इस प्रसंग में श्रीराधा के उरोज पृष्ठ का काठिन्य एवं तीक्ष्णत्व अभिव्यक्त हो रहा है। यहाँ श्रीराधा की प्राकृतिक रूप से अति रमणीयता एवं सौकुमार्यता निदर्शित हुई है- वे फूलों से भी अधिक कोमल है।
प्रस्तुत श्लोक में श्रृंगार रस, वैदर्भी रीति एवं प्रसाद गुण है।
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