गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 455

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

एकादश: सर्ग:
सामोद-दामोदर:

द्वाविंश: सन्दर्भ:

22. गीतम्

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सानन्दं नन्दसूनुर्दिशतु मितपरं सम्मदं मन्दमन्दं
राधामाधाय बाह्वोर्विरमनु दृढं पीडयन्प्रीतियोगात्।
तुंगौ तस्या उरोजावतनु वरतनोर्निगतौ मा स्म भूतां
पृष्ठं निर्भिद्य तस्माद्बहिरिति वलितग्रीवमालोक्यन्व: ॥3॥

अनुवाद- नन्दपुत्र श्रीकृष्ण ने श्रीराधा को मन्द-मन्द अपनी बाहों के अन्तराल में रखा, प्रीतिपूर्वक उनका गाढ़ आलिंगन किया। पुन: ग्रीवा को घुमाकर ऐसे देखने लगे मानो श्रीराधा के उन्नत उरोज उनकी पीठ को भेदकर बाहर न निकल जायें ऐसे श्रीकृष्ण सभी का आनन्द विधान करें।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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