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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
अष्टम: सर्ग:
विलक्ष्यलक्ष्मीपति:
सप्तदश: सन्दर्भ:
17. गीतम्
वंशीध्वनि को सुनकर व्रज-कुरांगनाएँ हिरणियाँ आकर्षित हो स्तम्भित रह जाती हैं। उच्चाटन तो वंशीरव में प्रमाणित ही है। अन्त:करणों का मोहित हो जाना मोहनत्व है। इस प्रकार मोहनत्व, वशीकरणत्व, स्तम्भत्व, आकर्षणत्व, उच्चाटनत्व एवं मारणत्व के गुणों से युक्त होने के कारण वंशीध्वनि महामंत्र स्वरूप है। इस महामन्त्रत्व का जादू गोपियों से विशेष रूप से सम्बन्धित है। श्रीकृष्ण श्रीराधा के प्रगाढ़ मान को दूर करने के लिए षट्साधन सम्पन्न महामन्त्रस्वरूप वंशीध्वनि करने लगे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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