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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
अष्टम: सर्ग:
विलक्ष्यलक्ष्मीपति:
सप्तदश: सन्दर्भ:
17. गीतम्
पद्यानुवाद १ बालबोधिनी- श्रीराधा खेद को प्राप्त होकर श्रीकृष्ण से कहती हैं हे कृष्ण! बाहर से तुम जितने काले हो, अन्दर से तुम उससे भी अधिक काले हो। स्वभावत: उदार एवं उज्ज्वल मन मेरे प्रति इतनी उदासीनता कैसे बरत सकता है? अपने ही अनुकूल, अपने ही आश्रितजन के साथ इतना छल, मेरी उपेक्षा कर परायी रमणी के साथ विलास, जो मलिन-मन होता है, वही अपने आश्रित व्यक्ति के साथ छल कर सकता है। मैं तो पहले से ही काम-शरों से पीड़िता हूँ, कम से कम इस स्थिति में तो धोखा नहीं देना चाहिए। जाओ छलिया! तुम यहाँ से चले जाओ। कोई शुद्ध अन्त:करण वाला व्यक्ति ऐसा कभी नहीं कर सकता। श्रीकृष्ण ने कहा राधे! मुझ पर व्यर्थ ही शंका मत करो, मैं कभी भी तुम्हारी वञ्चना नहीं कर सकता हूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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