गीता रहस्य -तिलक पृ. 306

गीता रहस्य अथवा कर्मयोग शास्त्र -बाल गंगाधर तिलक

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ग्यारहवाँ प्रकरण

इसी प्रकार उपनिषदों में भी कथा है कि अश्‍वपति कैकेय राजा ने उद्दालक ऋषि को[1] और काशिराज अजातशत्रु ने गार्ग्‍य बालाकी को (बृ. 2. 1) ब्रह्मज्ञान सिखाया था। परन्‍तु यह वर्णन कहीं नहीं मिलता, कि अश्‍वपति या जनक ने राजपाट छोड़ कर कर्मत्‍याग रूप संन्‍यास ले लिया। इसके विपरीत, जनक-सुलभा संवाद में जनक ने स्‍वंय अपने विषय में कहा है कि “हम मुक्त्संग हो कर–आसक्ति छोड़ कर–राज्‍य करते हैं। यदि हमारे एक हाथ को चन्‍दन लगाओ और दूसरे को छील डालो, तो भी उसका सुख और दु:ख हमें एक सा ही है।” अपनी स्थिति का इस प्रकार वर्णन कर[2]जनक ने आगे सुलभा से कहा है–

मोक्षे हि त्रिविधा निष्‍ठा दृष्‍टाऽन्‍यैर्मोक्षवित्तमै:।
ज्ञानं लोकोत्तरं यच्‍च सर्वत्‍यागश्च कर्मणाम्।।
ज्ञाननिष्‍ठा वदंत्‍येके मोक्षशास्‍त्रविदो जना:।
कर्मनिष्‍ठां तथैवान्‍ये यतय: सूक्ष्‍मदर्शिन:।।
प्रहायोभयमप्‍येवं ज्ञानं कर्म च केवलम्‌।
तृतीयेयं समाख्‍याता निष्‍ठा तेन महात्‍मना।।

अर्थात ‘’ मोक्षशास्‍त्र के ज्ञाता मोक्ष-प्राप्ति के लिये तीन प्रकार की निष्‍ठाएं बतलाते हैं;-

  1. ज्ञान प्राप्‍त कर सब कर्मों का त्‍याग कर देना–इसी को कुछ मोक्षशास्‍त्रज्ञ ज्ञाननिष्‍ठा कहते हैं;
  2. इसी प्रकार दूसरे सूक्ष्‍मदर्शी लोग कर्मनिष्‍ठा बतलाते हैं; परन्‍तु केवल कर्म-इन दोनों निष्‍ठाओं को छोड़ कर,
  3. यह तीसरी ( अर्थात ज्ञान से आसक्ति का क्षय कर कर्म करने की ) निष्‍ठा (मुझे) उस महात्‍मा (पचंशिख) ने बतलाई है ‘’[3]

निष्‍ठा शब्‍द का सामान्‍य अर्थ अन्तिम स्थिति, आधार या अवस्‍था है। परन्‍तु इस स्‍थान पर और गीता में भी निष्‍ठा शब्‍द का अर्थ ‘’ मनुष्‍य के जीवन का वह मार्ग, ढंग, रीति या उपाय है, जिससे आयु बिताने पर अन्‍त में मोक्ष की प्राप्ति होती है।" गीता पर जो शांकरभाष्‍य है, उसमें भी निष्‍ठा–अनुष्‍ठेयतात्‍पर्य–अर्थात् आयुष्‍य या जीवन में, जो कुछ अनुष्‍ठेय (आचरण करने योग्‍य) हो उसमें तत्‍परता (निमग्र रहना)–यही अर्थ किया है। आयुष्‍य–क्रम या जीवन-क्रम के इन मार्गों में से यज्ञ-याग आदि कर्म करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है–

ईजाना बहुभि: यज्ञै: ब्राह्मणा वेदपारगा:।
शास्‍त्राणि चेत्‍प्रमाणं स्‍यु: प्राप्‍तास्‍ते परमां गतिम्।।

क्‍योंकि, ऐसा न मानने से, शास्‍त्र की अर्थात वेद की आज्ञा व्‍यर्थ हो जावेगी[4]। और, उपनिषत्‍कार तथा बादरायणाचार्य ने, यह निश्चय कर कि यज्ञ-याग आदि सभी कर्म गौण हैं, सिद्धांत किया है कि मोक्ष प्राप्ति ज्ञान से ही होती है, ज्ञान के सिवा और किसी से भी मोक्ष का मिलना शक्‍य नही[5]। परन्‍तु जनक कहते हैं कि इन दोनों निष्‍ठाओं को छोड़ कर आसक्ति-विरहित कर्म करने की एक तीसरी ही निष्‍ठा पंचशिख न (स्‍वंय सांख्‍यमार्गी हो कर भी) हमें बतलाई है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. छां. 5. 11-24
  2. मभा. शां. 320. 36
  3. मभा. शां. 320. 38-40
  4. जै. सू. 5. 2. 23 पर शाबरभाष्‍य दखो
  5. वेसू. 3. 4. 1, 2

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गीता रहस्य अथवा कर्म योग शास्त्र -बाल गंगाधर तिलक
प्रकरण नाम पृष्ठ संख्या
पहला विषय प्रवेश 1
दूसरा कर्मजिज्ञासा 26
तीसरा कर्मयोगशास्त्र 46
चौथा आधिभौतिक सुखवाद 67
पाँचवाँ सुखदु:खविवेक 86
छठा आधिदैवतपक्ष और क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विचार 112
सातवाँ कापिल सांख्यशास्त्र अथवा क्षराक्षर-विचार 136
आठवाँ विश्व की रचना और संहार 155
नवाँ अध्यात्म 178
दसवाँ कर्मविपाक और आत्मस्वातंत्र्य 255
ग्यारहवाँ संन्यास और कर्मयोग 293
बारहवाँ सिद्धावस्था और व्यवहार 358
तेरहवाँ भक्तिमार्ग 397
चौदहवाँ गीताध्यायसंगति 436
पन्द्रहवाँ उपसंहार 468
परिशिष्ट गीता की बहिरंगपरीक्षा 509
- अंतिम पृष्ठ 854

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