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गीता चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
गीतोक्त समग्र ब्रह्म या पुरुषोत्तम
इसके बाद सातवें अध्याय के अन्त में आप कहते हैं- जरामरणमोक्षाय मामाश्रित्य यतन्ति ये । ‘जो पुरुष मेरे शरण होकर जरा-मरण से सर्वथा मुक्त होने के लिये यत्न (मेरा भजन) करते हैं, वे उस ब्रह्म, सम्पूर्ण अध्यात्म, निखिल कर्म, अधिभूत, अधिदैव और अधियज्ञ के सहित मुझको सम्यक् रूप से जानते हैं, वे ही युक्त चित्त पुरुष अन्तकाल में भी मुझको ही जानते (पाते) हैं।’ वे जानते हैं कि सम्पूर्ण विभिन्न भाव एकमात्र उन्हीं पूर्णतम परात्पर भगवान् के ही प्रकाश हैं। इसी से तद्भाव-भावित होने के कारण उन्हें अन्त में भगवान् की ही प्राप्ति होती है। आठवें अध्याय के आरम्भ में अर्जुन उत्सुकता के साथ भवगवान् से ब्रह्म, अध्यात्म, कर्म, अधिभूत, अधिदैव और अधियज्ञ का स्वरूप पूछते हैं एवं प्रयाणकाल में भगवान् को जानने का-पाने का साधन जानना चाहते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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