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गीता चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
चतुर्दश अध्याय
सत्त्वं सुखे संजयति रज: कर्मणि भारत । अर्जुन! सत्व गुण सुख में लगता हे और रजोगुण कर्म में, परंतु तमोगुण तो ज्ञान को ढककर प्रमाद में लगाता है। अर्जुन! रजोगुण और तमोगुण को दबाकर सत्व गुण, सत्व गुण और तमोगुण को दबाकर तमोगुण होता(बढ़ता) है।जिस समय इस देह में तथा अन्तः करण और इन्द्रियों में चेतनता और ज्ञान उत्पन्न होता है, उस समय ऐसा जानना चाहिये कि सत्व गुण बढ़ा है। भरतश्रेष्ठ! रजोगुण के बढ़ने पर लोभ, प्रकृति, आरम्भ, अशान्ति और भोग-स्पृहा-ये सब उत्पन्न होते हैं। कुरुनन्दन! तमोगुण के बढ़ने पर अन्तःकरण और इन्द्रियों में अप्रकाश, कर्तव्य-कर्मों में अप्रवृत्ति, प्रमाद (करने योग्य कार्य न करना और न करने योग्य कार्य करना) और निद्रादि अन्तः करण की मोहिनी वृत्तियाँ-ये सब उत्पन्न होते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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