विषय सूची
गीता चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
चतुर्दश अध्याय
सत्त्वं रजस्तम इति गुणा: प्रकृतिसंभवा: । अर्जुन! प्रकृति से उत्पन्न सत्वगुण, रजोगुण और तमोगुण-ये तीनों गुण अविनाशी जीवात्मा को देह में बाँध लेते हैं।। 5।। निष्पाप! उन तीनों गुणों में सत्व गुण तो निर्मल होने के कारण प्रकाशक और विकार रहित है; वह सुख के सम्बन्ध से और ज्ञान के सम्बन्ध से अर्थात् उसके अभिमान से बाँधता है।। 6।। कुन्ती पुत्र अर्जुन! रागात्मक रजोगुण को तृष्णा और आसक्ति से उत्पन्न जान। वह इस जीवात्मा को कर्मों के (और उनके फल के) सम्बन्ध से बाँधता है।। 7।। अर्जुन! सब देहाभिमानियों को मोहित करने वाले तमोगुण को तू अज्ञान से उत्पन्न जान। वह इस जीवात्मा को प्रमाद, आलस्य और निद्रा के द्वारा बाँधता है।। 8।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | प्रकरण | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज