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गीता चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
चतुर्दश अध्याय
श्रीभगवानुवाच- श्री भगवान् बोले- ज्ञानों में अति उत्तम परम ज्ञान को मैं फिर कहता हूँ, जिसको जानकर सब मुनिजन इस संसार से मुक्त होकर परम सिद्धि को प्राप्त हो चुके हैं।। 1।। इस ज्ञान का आश्रय लेकर मेरे साधम्र्य को प्राप्त हुए पुरुष न तो सृष्टि के आदि में पुनः उत्पन्न होते हैं और न प्रलय काल में व्यथित होते हैं।। 2।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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