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गीता चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
नवम अध्याय
सर्वात्म रूप से प्रभाव सहित भगवान् के स्वरूप का वर्णनअहं क्रतुरहं यज्ञः स्वधाहमहमौषधम्। क्रतु मैं हूँ, स्वधा मैं हूँ, औषध मैं हूँ, मन्त्र मैं हूँ, घृत मैं हूँ, अग्नि मैं हूँ और हवन रूप क्रिया भी मैं ही हूँ। मैं ही इस समस्त जगत् का माता, पिता, धाता (धारण करने वाला) पितामह हूँ, और मैं ही जानने योग्य, पवित्र ओंकार तथा ऋग्वेद, सामवेद एवं यजुर्वेद भी हूँ। मैं ही गति (प्राप्त होने योग्य परमधाम), भरण-पोषण करने वाला, सबका स्वामी, शुभाशुभ का देखने वाला, सबका वास स्थान, शरण लेने योग्य, प्रत्युपकार न चाहकर हित करने वाला, सबकी उत्पत्ति-प्रलय का हेतु, स्थिति का आधार, निधान और अविनाशी बीज हूँ। मैं ही सूर्य रूप से तपता हूँ, वर्षा का आकर्षण करता हूँ और उसे बरसाता हूँ। अर्जुन! मैं ही अमृत और मृत्यु तथा सत्-असत् भी मैं हूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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