गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 175

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

तृतीय: सर्ग:
मुग्ध-मधुसूदन:

अथ सप्तम सन्दर्भ
7. गीतम्

Prev.png

भ्रूपल्लवो धनुरपांग-तरंगितानि
बाणा गुण: श्रवण-पालिरिति स्मरेण।
तस्यामनंग-जय-जंगम-देवताया-
मस्त्राणि निर्जित-जगन्ति किमर्पितानि ॥11॥[1]

अनुवाद- अहो! भ्रु-पल्लवरूपी धनुष, अपांग-भंगिमा, तरंगरूपी बाण, नयन अवधि श्रवण प्रान्त तक विस्तृत ज्या अर्थात धनुष की डोरी इस सम्पूर्ण अमोघ अस्त्रविद्या के साधनरूपी उपकरणों को कामदेव ने सम्पूर्ण जगत को निर्विशेषरूप में जीतकर उन अस्त्रों की स्वामिनी, अपनी विजय की जंगम देवता श्रीराधा को पुन: अर्पित कर दिया है।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अन्वय- भ्रूपल्लव: (भ्रू: पल्लव इव तथोक्त:) धनु: (कार्मुकं) अपागंतरतिानि (कटाक्षप्रेक्षितानि) बाणा: (शरा:), श्रवणपालि: (कर्णप्रान्तभाग:) गुण: (मौर्वी) इति (एतानि) निर्जित-जगन्ति (निर्जितानि जगन्ति यै: तादृशानि) अस्त्राणि स्मरेण (कामेन) अनंग-जय-जंगम-देवतायाम् (अनंगस्य जय: त्रिभुवनपराभव स्तस्य या जंगमा चञ्चला देवता तदधिष्ठात्री देवीत्यर्थ: तथाभूतायां) तस्याम् (राधायाम्) अर्पितानि (न्यस्तानि) किम्? [तत्प्रसादलब्धैरस्त्रै: जगज्जित्वा पुनस्तत्रै-वार्पितानीति भाव:] ॥3॥

संबंधित लेख

गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः