गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 107

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर

अथ चतुर्थ सन्दर्भ
4. गीतम्

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केलि-कला-कुतुकेन च काचिदमुं यमुनावनकुले।
मञजुल-वञजुल-कुञ्जगतं विचकर्ष करेण दुकूले
[हरिरिह-मुग्ध-वधुनिकरे... ॥5॥]

करतल-ताल-तरल-वलयावलि-कलित-कलस्वन-वंशे।
रासरसे सहनृत्यपरा हरिणा युवति: प्रशंससे
[हरिरिह-मुग्ध-वधुनिकरे... ॥6॥]

श्लिष्यति कामपि चुम्बति कामपि कामपि रमयति रामां।
पश्यति सस्मित-चारुतरामपरामनुगच्छति बामां ॥7॥
[हरिरिह-मुग्ध-वधुनिकरे... ॥7॥]

श्रीजयदेव-भणितमिदमभुत-केशव-केलि-रहस्यं ।
वृन्दावन-विपिने ललितं वितनोतु शुभानि यशस्यम्
[हरिरिह-मुग्ध-वधुनिकरे... ॥8॥]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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