गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 106

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर

अथ चतुर्थ सन्दर्भ
4. गीतम्

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रामकिरीरागेण यतितालेन च गीयते।

चन्दन-चर्चित-नील-कलेवर पीतवसन-वनमाली
केलिचलन्मणि-कुण्डल-मण्डित-गण्डयुग-स्मितशाली
हरिरिह-मुग्ध-वधुनिकरे
विलासिनी विलसति केलिपरे ॥1॥ ध्रुवम्र॥

पीन-पयोधर-भार-भरेण हरिं परिरभ्य सरागं।
गोपवधूरनुगायति काचिदुदञचित-पञ्चम-रागम्र
[हरिरिह-मुग्ध-वधुनिकरे... ॥2॥]

कापि विलास-विलोल-विलोचन-खेलन-जनित-मनोजं।
ध्यायति मुग्धवधूरधिकं मधुसूदन-वदन-सरोजम्
[हरिरिह-मुग्ध-वधुनिकरे... ॥3॥]

कापि कपोलतले मिलिता लपितुं किमपि श्रुतिमूले।
चारु चुचुम्ब नितम्बवती दयितं पुलकैरनुकूले
[हरिरिह-मुग्ध-वधुनिकरे... ॥4॥]


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सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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