कविता भाटिया (वार्ता | योगदान) |
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'''यस्मात् कर्मनिष्ठात् पुरुषान्निमित्त भूतान् लोको न उद्विजयते, यः लोकोद्वेगकरं कर्म किञ्चिद् अपि न करोति इत्यर्थः। लोकात् च निमित्तभूताद् यः न उद्विजते, यम् उद्दिश्य सर्वलोको न उद्वेगकरं कर्म करोति, सर्वाविरोधित्वनिश्चयात्। अतएव कंचन प्रति हर्षेण, कंचन प्रति अमर्षेण कंचन प्रति भयेन, कंचन प्रति उद्वेगेन मुक्तः एवम्भूतः यः सः अपि मे प्रियः।।15।।''' | '''यस्मात् कर्मनिष्ठात् पुरुषान्निमित्त भूतान् लोको न उद्विजयते, यः लोकोद्वेगकरं कर्म किञ्चिद् अपि न करोति इत्यर्थः। लोकात् च निमित्तभूताद् यः न उद्विजते, यम् उद्दिश्य सर्वलोको न उद्वेगकरं कर्म करोति, सर्वाविरोधित्वनिश्चयात्। अतएव कंचन प्रति हर्षेण, कंचन प्रति अमर्षेण कंचन प्रति भयेन, कंचन प्रति उद्वेगेन मुक्तः एवम्भूतः यः सः अपि मे प्रियः।।15।।''' | ||
− | जिस कर्म निष्ठा वाले पुरुष के निमित्त से प्राणियों को उद्वेग नहीं होता अर्थात् जो पुरुष लोगों को उद्विग्न करने वाला कोई भी कर्म नहीं करता तथा जो लोगों के द्वारा उद्वेगयुक्त नहीं किया जाता- जिसके उद्देश्य से दूसरे लोग भी कोई उद्वेगकारक कर्म नहीं करते; क्योंकि सभी उसको अविरोधी समझते हैं। इसीलिये जो किसी के प्रति हर्ष, किसी के प्रति | + | जिस कर्म निष्ठा वाले पुरुष के निमित्त से प्राणियों को उद्वेग नहीं होता अर्थात् जो पुरुष लोगों को उद्विग्न करने वाला कोई भी कर्म नहीं करता तथा जो लोगों के द्वारा उद्वेगयुक्त नहीं किया जाता- जिसके उद्देश्य से दूसरे लोग भी कोई उद्वेगकारक कर्म नहीं करते; क्योंकि सभी उसको अविरोधी समझते हैं। इसीलिये जो किसी के प्रति हर्ष, किसी के प्रति ईर्ष्या, किसी के भय और किसी के प्रति उद्वेग से रहित हो गया है, ऐसा जो पुरुष है, वह भी मेरा प्रिय है। ।15।। |
| style="vertical-align:bottom;"| [[चित्र:Next.png|right|link=श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य पृ. 295]] | | style="vertical-align:bottom;"| [[चित्र:Next.png|right|link=श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य पृ. 295]] |
01:22, 24 मार्च 2018 के समय का अवतरण
श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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