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'''प्रवृतिं च निवृत्तिं च कार्याकार्ये भयाभये ।''' | '''प्रवृतिं च निवृत्तिं च कार्याकार्ये भयाभये ।''' | ||
'''बन्धं मोक्षं च या वेत्ति बुद्धि: सा पार्थ सात्त्विकी ।। 30 ।।''' | '''बन्धं मोक्षं च या वेत्ति बुद्धि: सा पार्थ सात्त्विकी ।। 30 ।।''' | ||
− | '''यया | + | '''यया धर्ममधर्म च कार्यं चाकार्यमेव च ।''' |
'''अयथावत्प्रजानाति बुद्धि: सा पार्थ राजसी ।। 31 ।।''' | '''अयथावत्प्रजानाति बुद्धि: सा पार्थ राजसी ।। 31 ।।''' | ||
− | ''' | + | '''अधर्म धर्ममिति या मन्यते तमसावृता ।''' |
'''सर्वार्थान् विपरीतांश्च बुद्धि: सा पार्थ तामसी ।। 32 ।।''' | '''सर्वार्थान् विपरीतांश्च बुद्धि: सा पार्थ तामसी ।। 32 ।।''' | ||
'''धृत्या यया धारयते मन:प्राणेन्द्रियक्रिया: ।''' | '''धृत्या यया धारयते मन:प्राणेन्द्रियक्रिया: ।''' |
01:23, 24 मार्च 2018 के समय का अवतरण
गीता रहस्य अथवा कर्मयोग शास्त्र -बाल गंगाधर तिलक
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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