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श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती
वंश परिचय और जन्महम मनुष्य-योनि में बहुत दिनों तक नहीं रहना चाहते, इसलिये पैदा होते ही तुम हम लोगों को अपने जल में डाल देना, इससे ऋषि का शाप भी पूरा हो जायेगा और शीघ्र ही हमारा उद्धार भी हो जायेगा।' गंगा ने कहा-'तुम्हारी बात हमें स्वीकार है, परंतु एक बात तो तुम लोगों को करनी ही। महाराजा शान्तनु का मुझसे पुत्र उत्पन्न करना व्यर्थ नहीं होना चाहिये। कम-से-कम एक पुत्र तो जीवित रहना ही चाहिये।' वसुओं ने कहा- 'हम लोग अपने-अपने तेज का आठवा अंश दे देंगे और हमारा सबसे छोटा भाई धुनामका वसु कुछ दिनों तक पृथ्वी पर रह जायेगा। वह बड़ा ही प्रतापी होगा: परंतु उसका वंश नहीं चलेगा।' गंगा ने उनकी बात स्वीकार की और वसुगण यथेष्ट स्थान को चले गये। महाराज शान्तनु बड़ी ही योग्यता के साथ प्रजा पालन का कार्य कर रहे थे। उनके राज्य में कोई प्रजा दुःखी नहीं थी। सब दु:खों के प्रतिकार का उपाय वे पहले से ही कर रखते थे। स्वयं जा-जाकर वे प्रजा के दु:ख-सुख का पता लगाते थे और उनके हित की दृष्टि से उनका विधान करते थे। एक दिन वे घूमते-फिरते सिद्ध-चारणसेवित गंगाजी के तट पर पहुँच गये। उन्होंने देखा कि एक लक्ष्मी के समान कान्ति वाली सर्वांग सुन्दरी स्त्री विचर रही है। उसके विषय में कुछ जानने की उन्हें बड़ी उत्सुकता हुई। उन्होंने देखा कि वह अनुरक्त् दृष्टि से मेरी ओर देख रही है और कुछ बातचीत करने का इशारा कर रही है। उसके हृदय का भाव समझकर सम्राट शान्तनु ने उससे पूछा- 'देवि! तुम कौन हो? तुम देवता हो या दानव, गन्धर्व कन्या हो या नागकन्या, मनुष्यों में तो तुम्हारी जैसी सुन्दरी का होना असम्भव ही है। क्या, मेरे पिता ने जिस दिव्य स्त्री का संकेत मुझसे किया था वह तुम्हीं हो? यदि ऐसी बात है तो तुम मुझे स्वीकार करके कृतार्थ करो।' मधुर और मन्द मुस्कान से राजा की ओर देखकर वसुओं की बात याद रखते हुए गंगा देवी ने कहा- 'राजन्! वास्तव में मैं वही हूँ, आपकी इच्छा पूर्ण करूँगी और आपकी आज्ञा का पालन करूँगी ; किन्तु आपको भी एक प्रतिज्ञा करनी पड़ेगी। मैं आपके साथ प्रिय या अप्रिय चाहे जैसा व्यवहार करूँ आप मुझे मना नहीं कर सकेंगे और न कठोर वचन ही कह सकेंगे। आप जब तक इस प्रतिज्ञा का पालन करते रहेंगे, तभी तक मैं आपके पास रहूँगी। जिस दिन आप इसका उल्लंघन करेंगे, मुझे किसी काम से रोकेंगे या निष्ठुर वाणी कहेंगे उसी समय मैं छोड़कर चली जाऊँगी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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