भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 100

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग

एक महात्मा के मुँह से सुना है कि किसी व्यक्ति के वर्तमान जीवन की दिनचर्या जाननी हो तो उससे अचानक ही दस बजे रात या चार बजे प्रात:काल मिलना चाहिये। जिसका उपर्युक्त समय प्रमाद में बीतता है, उसका अधिकांश समय प्रमाद में ही बीतता होगा, ऐसा समझना चाहिये। यह बात तो दृष्टान्त के लिये कही गयी है। किसी के पूरे जीवन का इतिहास जानना हो तो उसका अन्तिम जीवन देखना चाहिये। जिसने जीवन भर जप किया होगा, वह अन्तिम समय में भी जप करेगा। जिसने जीवन भर ध्यान किया होगा, वह अन्तिम समय में भी ध्यान करेगा। जिसने जीवन भर श्रीकृष्ण के दर्शन करते हुए ही बिताये होंगे, वह अन्तिम समय में भी श्रीकृष्ण के दर्शन करता हुआ मरेगा। भगवान् श्रीकृष्ण ने भी 'सदा तद्भभावभावित:' कहकर इसी विचार की पुष्टि की है।

भीष्म ने अपने जीवन प्रारम्भ में भगवान् का चिन्तन किया था। भगवान् के लिये, भगवान् की प्रसन्नता के लिये, भगवान् की आज्ञा का पालन करने के लिये, सिद्धि और असिद्धि में सम होकर निष्काम भाव से उन्होंने अपने कर्तव्य कर्मों का अनुष्ठान किया था। उनका जीवन था भगवान् का चिन्तन, भगवान् का स्मरण। उनकी आँख देखती रहती थीं भगवान् को। अब उनका अन्तकाल उपस्थित है। वे उसी प्रकार भगवान् का स्मरण, चिन्तन, दर्शन करते हुए अपना शरीर त्याग करेंगे, इसमें क्या सन्देह हो सकता है।

सूर्य उत्तरायण हुए, भीष्म पितामह के शरीर-त्याग का दिन आया। हस्तिनापुर से चलकर धृतराष्ट्र, पाण्डव, भगवान् श्रीकृष्ण सब उपस्थित हुए। भीष्म पितामह के पास महर्षि वेदव्यास, देवर्षि नारद और असित पहले से ही बैठे हुए थे। युधिष्ठिर ने सबको प्रणाम किया। उन्होंने भीष्म पितामह से अपने लिये आज्ञा माँगी। पितामह ने युधिष्ठिर का हाथ पकड़कर गम्भीर ध्वनि से कहा- 'युधिष्ठिर! सूर्य उत्तरायण हो गये हैं। मन्त्रियों, मित्रों ओ गुरुजनों के साथ तुम्हें आया हुआ देखकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई। इन तीखे बाणों पर पड़े-पड़े आज 58 दिन बीत गये। माघ महीने का शुक्ल पक्ष है, अब मुझे शरीर त्याग करना चाहिये।' इसके बाद पितामह ने धृतराष्ट्र को बुलाकर कहा-'महाराज! तुमने धर्म और अर्थ के तत्व को समझा है। विद्वान ब्राह्मणों की सेवा की है, शास्त्रों का स्वाध्याय किया है। शोक करने का कहीं भी कोई कारण नहीं है। लोग अपने अज्ञान से ही सुखी-दु:खी होते हैं। होने वाली बात तो होती ही है, यह न हो यह हो ऐसा पूर्व-संकल्प करके अज्ञानी लोग शोक और मोह से संतप्त होते हैं। पाण्डव तुम्हारे पुत्र हैं, वे तुम्हारी आज्ञा का पालन करेंगे। तुम्हारे सौ पुत्र दुरात्मा थे, तुम्हारी आज्ञा नहीं मानते थे। भगवान् से विमुख थे, उनके लिये शोक नहीं करना चाहिये।'

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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