"हरिगीता अध्याय 10:1-5" के अवतरणों में अंतर

 
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श्रीभगवान् ने कहा-
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श्रीभगवान् बोले-
 
मेरे परम शुभ सुन महाबाहो! वचन अब और भी।
 
मेरे परम शुभ सुन महाबाहो! वचन अब और भी।
 
तू प्रिय मुझे, तुझसे कहूँगा बात हित की मैं सभी॥1॥
 
तू प्रिय मुझे, तुझसे कहूँगा बात हित की मैं सभी॥1॥

17:23, 22 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण

श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश'

अध्याय 10 पद 1-5

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श्रीभगवान् बोले-
मेरे परम शुभ सुन महाबाहो! वचन अब और भी।
तू प्रिय मुझे, तुझसे कहूँगा बात हित की मैं सभी॥1॥

उत्पत्ति देव महर्षिगण मेरी न कोई जानते।
सब भाँति इनका आदि हूँ मैं, यों न ये पहिचानते॥2॥

जो जानता मुझको महेश्वर अज अनादि सदैव ही।
ज्ञानी मनुष्यों में सदा सब पाप से छुटता वही॥3॥

नित निश्चयात्मक बुद्धि ज्ञान अमूढ़ता सुख दुःख दम।
उत्पत्ति लय एवं क्षमा, भय अभय सत्य सदैव शम॥4॥

समता अहिंसा तुष्टि तप एवं अयश यश दान भी।
उत्पन्न मुझसे प्राणियों के भाव होते हैं सभी॥5॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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