सहेलियाँ साजन घरि आया हो -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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राग परज





सहेलियाँ साजन घरि आया हो ।। टेक ।।
बहोत दिनां की जोवती, विरहणि पिव पाया, हो ।
रतन करूँ नेवछावरी, ले आरति साजूँ, हो ।
पिया का दिया सनेसड़ा, ताहि बहोत निवाजूँ, हो ।
पाँच सखी इकठी भई, मिलि मंगल गावै, हो ।
पिय का रली बधावणां, आंणद अंगि न भावै, हो ।
हरि सागर सूँ नेहरो, नैणां बँध्या सनेह, हो ।
मीरां सखी के आंगणै, दूधां बूठा मेह, हो ।।148।।[1]




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सहेलियाँ = अरी सखियों। साजन = प्रियतम। बहोत = बहुत। जोवती = राह देखती। नेवछावरी = न्योछावर, समर्पण। सनेसड़ा = संदेश। निवाजूँ = अनुग्रह समझूँ। रली वधावणाँ = आनन्द बधाई का उत्सव ( देखो- ‘आजे रली बधाँमणाँ, आजे नवला नेह। सखी, अम्हीणी गोठमइँ, दूधै बूठा मेह’ - ढोला मारूरा दूहा )। भावै = समाता है। हरि सागर = हरि रूप समुद्र। नेहरो = स्नेह, प्रेम में। नैणाँ वँध्या = नेत्र बँध गये वा फँस गये। स्नेह = प्रेम में। दूधाँ = दूध की धाराओं से। आँगणै = आँगन में। बूठा = बर से।
    विशेष- "सखी के आँगणै, दूधां बूठा मेह हो," की समानता ऊपर उद्घृत "सखी, अम्हीणी गोठमइँ दूधे बूठा मेह" के साथ देखिए।

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