रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 44

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

रासलीला-चिन्तन-2

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स्वर्गाश्रम (ऋषिकेश) में दिये गये प्रवचन


अतः इन ऐश्वर्य-वीर्यादि छः शक्तियों की बात ध्यान में आते ही यह धारणा करनी उचित है कि ऐसी महाशक्ति वाला जो कोई है उसको जी की भाँति रमण करने की इच्छा हो ही नहीं सकती। क्यों नहीं हो सकती? इसलिये कि भगवान जो हैं उनकी सर्ववशीकारत्व शक्ति का नाम ऐश्वर्य है। ऐसा सिद्धान्त है। जिसमें सबको वश में करने की शक्ति है उसको क्या अपने मन, इन्द्रियों को वशीकरण की शक्ति नहीं है। जो मन-इन्द्रियों के वश में होकर रमण करने के लिये व्याकुल हो जायेगा। और खास करके ‘स ऐच्छत बहुस्यां प्रजायेयेति।’ यह श्रुतियों से जाना जाता है कि भगवान के ईक्षण मात्र से ही प्रकृति से चराचर ब्रह्माण्ड की सृष्टि हो गयी। भगवान ने कहा-

‘मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम्’[1]

तो ऐसे भगवान जिनमें इतना ऐश्वर्य है, इतनी शक्ति है वह क्या रमण के लिये कोई प्राकृत रमण की इच्छा वाले होंगे? इसलिये यह बुद्धिमान मात्र को समझ लेना चाहिये कि यह जिनके संकल्प मात्र से अनन्त कोटि ब्रह्माण्डों की सृष्टि, स्थिति और लय होता है। वे स्वयं आत्माराम सच्चिदानन्दघन विग्रह के रमण का प्रयोजन कोई दूसरा है। परन्तु वह प्रयोजन क्या है? एक विशेष बात ध्यान में रखने की है जिन लोगों ने भगवान के ब्रह्म-मोहन लीला के सम्बन्ध में कुछ धारणा की है वे जानते हैं कि ब्रह्मा ने जब वृन्दावन विहारी गोचारण परायण भगवान के लीला माधुर्य का आस्वादन करने के लिये बछड़ों को और गोप बालकों को चुराकर माया मुग्ध करके स्थानान्तरित कर दिया उस समय भगवान ही असंख्य गोप बालक बन गये।

भगवान ही बछड़े बन गये और एक वर्ष तक लगातार आत्मरूपी गोप बालकों के साथ, आत्मरूपी बछड़ों के साथ खेलते रहे। इससे स्पष्ट यह जाना जाता है कि भगवान अगर इच्छा करते तो अपने आप ही करोड़ों गोपियाँ बन जाते और अपने आप में ही खेल करते। सामर्थ्य थी ही फिर यह गोपियों को बुलाकर के रमण की इच्छा की। इससे स्वीकार ही करना पड़ेगा कि भगवान ने गोप रमणियों के साथ जो रमण की इच्छा की इसमें विशेषता कुछ दूसरी ही है। वह साधारण बुद्धि के गोचर नहीं हैं। तो और ऐसी बात वह कोई है कि स्वयं शत कोटि गोपी बनकर जैसे वहाँ गोप बालक बने ऐसा बन जाने से भगवान की जो मनोकामना इस समय की है वह पूर्ण नहीं होती। इससे यह मालूम होता है कि इसमें कुछ विशेषता दूसरी ही है। इस प्रकार से भगवान ने जो रणम की इच्छा की यह रमण लौकिक विलास बिल्कुल नहीं है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गीता 9।10

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