रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 102

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

रासलीला-चिन्तन-2

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स्वर्गाश्रम (ऋषिकेश) में दिये गये प्रवचन


इसी प्रकार भगवान भी अपनी योगमाया शक्ति का पूर्ण विकास करके गोप रमणियों के साथ रमण करने की इच्छा की और इस रमणलीला में जब जो जिस प्रकार प्रयोजन अघटनघटना पटीयसी अचिन्त्य महाशक्ति ने उस काम को कर दिया। इसीलिये ‘योगमाया आश्रितः’ न कह करके ‘उपाश्रितः’ कहा। यहाँ उपाश्रित शब्द का अर्थ है पूर्णरूप से प्रकट करना-प्रकाश करना - यश चक्षु आश्रित स्थितः - इस श्रुति वाक्य से आश्रित शब्द का प्रकाश अर्थ होता है।

सुतरां ‘योगमायामुपाश्रितः’ अर्थात प्रकटीकृतः यह अर्थ इसका मानना चाहिये। यह बात समझ में आयी कि श्रीभगवान ऐश्वर्य वीर्यादि षडविध महाशक्ति के प्रकाश में रासलीला के माधुर्य की रक्षा नहीं कर सकते। केवल ऐश्वर्य शक्ति से उनका काम नहीं होता। इसलिये यहाँ योगमाया शक्ति का प्रकाश करना आवश्यक हुआ जो अघटन घटना घटा दे, जो भगवान को मोहित कर दे तभी भगवान आत्महारा-अपने को खो सके-अपने को रखकर इस लीला का माधर्यु नहीं कर सकते। उनको अपने को खो देना आवश्यक था। ऐसा करके ही गोपियों के प्रेमवशानुरूप लीला करके उनके मनोवासना को पूर्ण करने में समर्थ हुये। भगवान ने अपनी परम मधुर रासलीला के सम्पादन करने के लिये अपनी अचिन्त्य महाशक्तियों को प्रकट किया और उसके सिवा कुछ और भी विशेषत्व प्रकाशित हुआ यहाँ पर। यह जो और विशेषत्व है यही एक मात्र ‘योगमायामुपाश्रितः’ इस विशेषण वाक्य के द्वारा सिद्ध है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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