राधा माधव रस सुधा पृ. 24

श्री राधा माधव रस सुधा -हनुमान प्रसाद पोद्दार

[षोडशगीत]

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श्रीकृष्ण के प्रेमोद्गार-श्रीराधा के प्रति

(राग शिवरंजन-तीन ताल)

मेरा तन-मन सब तेरा ही, तू ही सदा स्वामिनी एक ।
अन्यों का उपभोग्य न भोक्ता है कदापि, यह सच्ची टेक ॥ 1॥

तन समीप रहता न स्थूलतः, पर जो मेरा सूक्ष्म शरीर ।
क्षण भर भी न विलग रह पाता, हो उठता अत्यन्त अधीर ॥ 2॥

रहता सदा जुड़ा तुझसे ही, अतः बसा तेरे पद-प्रान्त ।
तू ही उसकी एकमात्र जीवन की जीवन है निर्भ्रान्त ॥ 3॥

हुआ न होगा अन्य किसी का उस पर कभी तनिक अधिकार ।
नहीं किसी को सुख देगा, लेगा न किसी से किसी प्रकार ॥ 4॥

यदि वह कभी किसी से किंचित् दिखता करता-पाता प्यार ।
वह सब तेरे ही रस का, बस, है केवल पवित्र विस्तार ॥ 5॥

कह सकती तू मुझे सभी कुछ, मैं तो नित तेरे आधीन ।
पर न मानना कभी अन्यथा, कभी न कहना निज को दीन ॥ 6॥

इतने पर भी मैं तेरे मन की न कभी हूँ कर पाता ।
अतः बना रहता हूँ सतत तुझको दुख का ही दाता ॥ 7॥

अपनी ओर देख तू मेरे सब अपराधों को जा भूल ।
करती रह कृतार्थ मुझको, दे पावन पद-पंकज की धूल ॥ 8॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

राधा माधव रस सुधा
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. महाभाव-रसराज-वन्दना 2
2. राग मालकोस-तीन ताल 4
3. राग रागेश्वर-ताल दादरा 6
4. राग भैरव-तीन ताल 8
5. राग भैरवी-तीन ताल 10
6. राग परज-तीन ताल 12
7. राग परज-तीन ताल 14
8. राग भैरवी तर्ज-तीन ताल 16
9. राग भैरवी तर्ज-तीन ताल 18
10. राग गूजर-ताल कहरवा 20
11. राग गूजर-ताल कहरवा 22
12. राग शिवरंजन-तीन ताल 24
13. राग शिवरंजन-तीन ताल 26
14. राग वागेश्र-तीन ताल 28
15. राग वागेश्र-तीन ताल 30
16. राग भैरव-तीन ताल 34
17. राग भैरवी तर्ज-तीन ताल 36
18. पुष्पिका 38
अंतिम पृष्ठ 39

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