श्रीकृष्ण के प्रेमोद्गार-श्रीराधा के प्रति(राग शिवरंजन-तीन ताल)मेरा तन-मन सब तेरा ही, तू ही सदा स्वामिनी एक । तन समीप रहता न स्थूलतः, पर जो मेरा सूक्ष्म शरीर । रहता सदा जुड़ा तुझसे ही, अतः बसा तेरे पद-प्रान्त । हुआ न होगा अन्य किसी का उस पर कभी तनिक अधिकार । यदि वह कभी किसी से किंचित् दिखता करता-पाता प्यार । कह सकती तू मुझे सभी कुछ, मैं तो नित तेरे आधीन । इतने पर भी मैं तेरे मन की न कभी हूँ कर पाता । अपनी ओर देख तू मेरे सब अपराधों को जा भूल । इस गीत का अनुवाद अगले पृष्ठ पर देखें |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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