श्रीकृष्ण के प्रेमोद्गार-श्रीराधा के प्रति(राग भैरवी तर्ज-तीन ताल)हे प्रियतमे राधिके! तेरी महिमा अनुपम, अकथ, अनन्त । सुधानन्द बरसाता हिय में तेरा मधुर वचन अनमोल । जपता तेरा नाम मधुर अनुपम, मुरली में नित्य ललाम । कहीं न मिला प्रेम शुचि ऐसा, कहीं न पूरी मन की आश । नित्य तृप्त निष्काम नित्य में मधुर अतृप्ति, मधुरतम काम । इस गीत का अनुवाद अगले पृष्ठ पर देखें |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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