मीराँबाई की पदावली पृ. 41

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मीराँबाई की पदावली
मीराँबाई व सूरदास

समान पद रचा के आधार पर, हिंदी भाषा की दृष्टि से, हम उनकी तुलना, इसी कारण महाकवि सूरदास से भी कर सकते हैं। सूरदास मीरां से पहले उत्पन्न हुए थे और पीछे मरे थे, अतएव मीरां उनकी सदा समसामयिक ही रहीं। दोनों उच्च कोटि के कृष्ण भक्त थे, परंतु सूर की उपासना संख्यभाव की थी और मीरां की माधुर्य भाव की। सूर ने ब्रजसुंदरियों के प्रेम व विरह के वर्णनों में माधुर्य भाव पू्र्ण रचना की है, किंतु सूर की गोपियों और मीरांबाई में कुछ अंतर भी दीख पड़ता है। सूर की गोपियां श्रीकृष्ण की परकीया प्रेमिकाएं थीं और वे उनकी प्रेयसी भी हो जाती थीं, किंतु मीरां प्रतिकूल परिस्थितयों के रहते हुए भी, सदा पत्नी भाव से ही उनकी आराधना करती रह गईं। मीरां का प्रेम भी, एक प्रकार से, रूपासक्ति से ही प्रारंभ हुआ था और एक प्रकार के साहचर्य की अनुभूति से ही उसकी पुष्टि भी हुई थी तो सूर द्वारा किए गए गोपियों के विरह वर्णन में, कदाचित रचयिता की स्वाभाविक विनोद प्रियता के कारण, मीरां की सी गंभीरता, स्पष्ट रूप से, लक्षित नहीं हो पाती। इसके सिवाय सूर की गोपियों का निर्गुण के प्रति नैसर्गिक विरोध है, किंतु मीरां उसका सगुण के साथ सामंजस्य स्थापित करने में कभी नहीं चूकती। मीरांबाई ने ब्रज की गोपियों को ही अपना आदर्श मान रखा था और कदाचित उन्हीं के साथ साम्य की भावना करतीं करतीं, वे उन्मुक्त स्वभाव की भी हो गई थीं।

सूर ने श्रीकृष्ण को बालरूप में भी अंकित कर उनकी बाल लीलाओं का बड़ा ही विशद वर्णन किया है, किंतु मीराँ, कदाचित अपने गहरे दाम्पत्यभाव के कारण, उधर उतनी आकृष्ट न हो सकीं। सूर ने श्रीकृष्ण की अन्य लीलाओं का भी यथास्थान सुंदर व विस्तृत वर्णन किया है, किंतु मीरां, इसकी अपेक्षा कहीं अधिक, उनके रूप वर्णन एवं उनके साथ अपने तादात्म्य स्थापन में ही संलग्न दीखती हैं। सूर ने इसी प्रकार श्रीकृष्ण का सौंदर्य वर्णन करते समय उनके शील एवं शक्ति को भी यथेष्ट स्थान दिया है। किंतु प्रेमिका मीरा का ध्यान, स्वभावत: उधर उतना नहीं जाता। प्रेम के प्रति प्रदर्शित सूर व मीरां की भावनाओं में भी हमें कुछ न कुछ विभिन्नता का ही आभाष मिला करता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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