भज मन चरण कमल अबिनासी -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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उपदेश
राग छायानट




भज मन चरण कँमल अबिनासी ।।टेक।।
जेताइ दीसे धरण गगन बिच, तेताइ सब उठ जासी।
कहा भयो तीरथ ब्रत कीन्हे, कहा लिये करवत कासी।
इण देहि का गरब न करण, माटी में मिल जासी।
यो संसार चहर की बाजी, सांझ पड्यां उठ जासी।
कहा भयो है भगवा पहर्यां, घर तज भये संन्यासी।
जोगी होय जुगति नहिं जाणी? उलटि जनम फिर आसी।
अरज करों अबला कर जोरे, स्याम तुम्हारी दासी।
मीरां के प्रभु गिरधर नागर, काटो जम की फाँसी ।।194।।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अविनासी = परमात्मा। जेताइ = जिसने, जो कुद भी। दीसे = दीख पड़ता है। धरण = धरणी, पृथ्वी। बिच = मध्य में। तेताइ = वह सभी, उतना। उठि जासी = उठ जायगा, विनश्वर है। इण = इस। देही = शरीर। यो = यह। चहर की बाजी = चिड़ियों का खेल। पड्यां = पड़ने वा न होने पर। कहा = क्या। भयो = हुआ। भगवा पहर्यां = गेरुआ पहनने से। जुगति = युक्ति, ईश्वर प्राप्ति के उपाय। आसी = आयगा। काटो = बन्द करो। जम की फाँसी = मृत्यु का भय, आवागमन।

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