नातो नाम को मोसूं तनक न तोड़यो जाइ -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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विरहयातना

राग मांड


नातो नाम को मोसूँ तनक न तोड़यो जाइ ।।टेक।।
पानाँ ज्‍यूँ पीली पड़ी रे, लोग कहें पिंड रोग ।
छाने लांघण मैं किया रे, राम मिलण के जोग ।
बाबल बैद बुलाइया रे, पकड़ दिखाई म्‍हाँरी बाँह ।
मूरिख बैद मरम नहिं जाणै, करक कलेजा माँह ।
जा बैदा घरि आपणे रे, मेरो नाँव न लेइ ।
मैं तो दाघी विरह की रे, तूँ काहे कूँ दारू[1] देइ ।
माँस गले गल छीजिया रे, करक रह्या गल आहि ।
आँगलियाँ रो मूदड़ो, म्‍हारे आवण लागो बाँहि ।
रहो रहो पापी पपीहा रे, पित्र को नाम न लेइ ।
जे कोइ विरहणि साम्‍हले, (सजनी[2] ) पिव कारण जीव देइ ।
खिण मंदिर खिण आँगणैरे, खिण खिण ठाढी होइ ।
घायल ज्‍यूँ घूमूँ सदारी[3], म्‍हाँरी बिथा न बूझै कोइ ।
काढ़ि कलेजो मैं धरूँ रे, कौवा तू ले जाइ ।
ज्‍याँ देसाँ म्‍हाँरो पिव बसै, (सजनी[4] ) वे देखै तू खाइ ।
म्‍हाँरे नातो नाव कोरे, और न नातो कोइ ।
मीराँ व्‍याकुल विरहणी रे, पिया दरसण दीजो मोइ ।।74।।[5]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. औपद
  2. तो
  3. खड़ी
  4. रे
  5. नातो = नाता, संबंध। मोसूँ = मुझ से। तनक = ज़रा भी। ताड्यो जाई = तोड़ा जा पाता है। पानाँ ज्यूँ = पत्तों की तरह। पिंडरोग = पांडुरोग। छाने = छिपकर। लाँघण = उपवास का व्रत। जोग = निमित। ( देखो - पीलक दौड़ी सांइयां, लोग कहै पिंड रोग। छांनै लंघण नित करै, राम पियारे जोग - कबीर )। बाबल = बाबाने। बुलाइया = बुलवाये। मरम = भेद वा रहस्य। करक = कसक पीड़ा, दर्द। जाणै = जानता है। दाधी = जली हुई हूँ। काहे कूँ = किस लिए। दारू = दवा। देह = देता है। छीजिया = घट गया। करक = हड्डियाँ। गल = गले में। आहि = आकर। आँगलियाँ रो मूँदड़ो = आँगुलियों की मुँदरी। आवण लागी = आने लगी, ठीक होने लगी। बाँहि = भुजा पर। रहो रहो = रह, चुप रह। पापी = दुष्ट। जे = जो, यदि। साम्हले = सुन पायेगी। जिवदेइ = प्राण त्याग कर देगी। ( देखो - ‘बाबाहिया, प्रिऊ प्रिऊ न कहि, प्रिऊ को नाम न लेह। काइक जागइ विरहणी, प्रिउ कह्या जिऊ देह’ - ढोला मारूरा दूहा )। खिण = क्षण भर के लिए। मंदिर = मकान के भीतर। आँगणे = आँगन में। ज्याँ देसाँ = जिन देशों में। वे देखै = उसको देखता हुआ। खाइ = खा लेना।( देखो = ‘काढि कलेजऊ आवणऊ, भोजन दिउंली तुज्झ’ - ढोला मारूरा दूहा।

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