देखो सहियां हरि मन काठो कि‍यो -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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उपालंभ

राग सुखसोरठ


देखो सहियाँ[1] हरि मन काठो कि‍यो ।। टेक ।।
आवन कह गयो अजूँ न आयो, करि करि बचन गयो ।
खान पान सुध बुध सब बिसरी, कैसे, करि[2] मैं जियों ।
बचन तुम्‍हारे तुमही बिसारे, मन मेरो हर लियो ।
मीराँ कहे प्रभु गिरधर नागर, तुम बिनि फटत हियो ।।56।।[3]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सइयाँ
  2. करीने
  3. सहियाँ = सखियों। काठो = कठिन। मन... कियो = मन को कड़ा करके उदासीन वा निरपेक्ष बन गये। अजूँ = आज तक। वचन = वादा। कैसे करि = किस प्रकार। तुम्हारे = अपने। फटत हियो = हृदय विदीर्ण हो रहा है।

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