गोबिंद कबहुँ मिलै पिया मेरा -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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विरह निवेदन

राग भीम पलाती


गोबिंद कबहुँ मिलै पिया मेरा ।।टेक।।
चरण कँवल कूँ हँसि-हँसि[1] देखूँ राखूँ नैणाँ नेरा ।
निरस्‍वण कूँ मोहि चाव घणेरो, कब देखूँ मुख तेरा ।
व्‍याकुल प्राण धरत नहिं धीरज, मिलि तूँ मीत सबेरा ।
मीराँ के प्रभु हरि गिरधर नागर, ताप तपन बहुतेरा ।।111।।[2]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हंस करि
  2. नैणाँ = नेत्रों के। नेरा = निकट। निरखण कूँ = देखने की। चाव = चाह। घणेरो = उत्कट, बड़ी। सबेरा = शीघ्र। तापतपन = अंतज्र्वाला।

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