गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 19इस भ्रान्ति की निवृत्ति-हेतु श्रौत-स्मार्त्त धर्म-कर्म, अनुष्ठान एवं उपासना की अवान्तर विभिन्न क्रियाएँ अनिवार्यतः अपेक्षित हैं। उपासना-विधि से शुद्धि, भूत-शुद्धि, नव-दिव्य देह-निर्माण, तत् देह में प्राण-प्रतिष्ठा, अन्तर एवं बाह्यमात्रिका न्यास, मंत्राक्षर-न्यास, अथवा कर्मकाण्डदृष्ट्या ‘गोप्यः’ अर्थात् प्रेमपंथ गोपनशीलाः प्रेममार्ग का रक्षण ही गोपांगनाओं का स्वभाव है। वे प्रेम-मार्ग की आचार्य हैं। उनमें ही महत् परिणाम-परिमित प्रेम है। अन्यत्र सर्वत्र ही मध्य परिमाण-परिमित प्रेम होता है। जैसे, स्वयं नाचकर ही नाचना सिखाया जाता है, वैसे ही, स्वयं प्रेम-समुद्र में निमग्न होकर ही प्रेम-मार्ग का दिग्दर्शन संभव नहीं। एतावता गोपांगनाओं के ध्यान से ही प्राणी प्रेम-मार्ग में प्रवृत्त होता है, उसके हृदय में प्रेम-तत्त्व का संचार होता है। अस्तु, भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र एवं रासेश्वरी राधारानी की आराधना हेतु अपने-अपने विशिष्ट सम्प्रदायानुसार राधारानी की परमान्तरंगा अष्ट सखियों में से किसी एक का अनुगमन अनिवार्य है। प्रेम-मार्ग-रक्षण-परायणा गोपियाँ आनन्दकन्द परमानन्द, सच्चिदानन्दघन भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र सुधासिन्धु की वीथि-स्थानीया, स्वरूपभूता तथा रासेश्वरी, नित्य निकुन्जेश्वरी राधारानी माधुर्य-सार-सर्वस्व की अधिष्ठात्री शक्ति-स्वरूपा है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ म. स्मृ. 2/28