गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 1भावुकों ने ‘व्रजे वने, निकुन्जे च श्रेष्ठमत्रोत्तरोत्तरम्’ जैसी कल्पना की है; तदनुसार व्रजेन्द्रनन्दन श्रीकृष्णचन्द्र, वृन्दावनचन्द्र श्रीकृष्णचन्द्र एवं नित्यनिकुन्जमन्दिराधीश्वर श्रीकृष्णचन्द्र स्वरूप उत्तरोत्तर पूर्ण, पूर्णतर एवं पूर्णतम मान्य हैं। पूर्णतम स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण चन्द्र के निरावरण चरणारविन्द-संस्पर्श के सौभाग्यातिशय को प्राप्त कर व्रजधाम ‘पूर्वतोवा सर्वतोवा’ अधिक उत्कर्ष को प्राप्त हो रहा है। उपासना के अन्तर्गत नाम, रूप, लीला एवं धाम चारों का ही विशेष महत्त्व हैं; सम्पूर्ण धामों में भी व्रजधाम सर्वाधिक शीर्ष स्थानीय है; ‘सर्वेषां धाम्नां कं शिरः स्थानीयं’ संसार के समस्त पुरी एवं धामों में व्रजधाम ही अग्रगण्य है। ‘काश्यादिपुर्यो यदि सन्तु लोके तेषां तु मध्ये मथुरैव धन्या।’ काशी आदि पुरियों में मथुरा ही विशेष धन्य है। काशीपुरी की बड़ी महिमा है क्योंकि ‘मरणं यत्र मंगलं’ काशीपुरी में मृत्यु मोक्षप्रद है परन्तु मथुरा में ‘या जन्म मौन्जी धृति मृत्यु दाहैर्नृणां चतुर्धा विदधाति मुक्तिम’ जन्म, मौन्जी-बन्धन, मृत्यु आदि विशेष संस्कारों में से किसी एक का हो जाना ही कल्याणप्रद है अतः मथुरापुरी की विशेषतः महामहिम है। ‘जयति तेऽधिकं जन्मना व्रजः’ पद का तात्पर्य कुछ विद्वानों के मतानुसार यह भी है कि व्रजधाम वैकुण्ठधाम की अपेक्षा भी अधिकाधिक उत्कर्ष को प्राप्त हो रहा है। वैकुण्ठधाम में अनन्त-ब्रह्माण्ड की ऐश्वर्याधिष्ठात्री शक्ति, वैकुण्ठेश्वरी भगवती, लक्ष्मी एका हैं अतः उनको अपने प्राण-वल्लभ श्रीमन्नारायण, भगवान विष्णु की सेवा के लिए उपयुक्त अवसर की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती किन्तु व्रजधाम में लक्ष्मी-तुल्य अनेकानेक गोपाङ्गनाएँ हैं। ‘श्रिय कान्ताः’ इत्यादि वचनों से सुस्पष्ट हो जाता है कि व्रजधाम को प्रत्येक कान्ता साक्षात श्रीस्वरूपा हैं। व्रजधाम में वैकुण्ठाधिपति भगवान श्रीमन्नारायण भगवान विष्णु स्वयं ही व्रजेन्द्रनन्दन, नवलकिशोर, गोपिकावल्लभरूप में सूत्रधार-संचालित-दारुयंत्रवत् स्वानुरागिणी गोपालियों का अनुवर्तन कर रहे हैं; एतावता, स्वभावतः ही परम-प्रेयसी, परम-साध्वी, पति-परायणा, वैकुण्ठेश्वरी इन्दिरा भी अपने प्राणधन, प्राणनाथ का अनुसरण करती हुई स्वयं भी हीनभाव, दास्यभाव से व्रजधाम में निरन्तर आश्रयण कर रही है। यहाँ शंका की जा सकती है कि संभवतः वैकुण्ठेश्वरी इन्दिरा विशेषतः महामहिम व्रजधाम की शोभा निरखने हेतु ही व्रज में आश्रयण कर रही हैं। यह शंका सर्वथा निराधार है क्योंकि वैकुण्ठधाम का ऐश्वर्य अद्वितीय है; साथ ही साथ, किसी भी अपूर्व शोभा के निरीक्षण हेतु निरन्तर आश्रयण सर्वथा अवांछनीय है। |