गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 265

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 7

भगवत्-हृदयस्थ पूर्णानुराग रस सार-सागर समुद्भूत, निर्मल, निष्कलंक चन्द्र-स्वरूपिणी श्री वृषभानु-नन्दिनी राधा रानी एवं श्री राधा-रानी के हृदय में विराजमान श्रीकृष्ण विषयक प्रेम-रससार-सागर समुद्भूत चन्द्ररूप ब्रजेन्द्र-नन्दन श्रीकृष्ण हैं; यह प्रेम सदानन्दैक रस-स्वरूप ही है क्योंकि विषय एवं आश्रय दोनों ही रस-स्वरूप हैं। पारमार्थिक सत्य की अपेक्षा किंचित् न्यून सत्ता का एक और सत्य माना जाता है जो भजनोपयोगी होता है; अतः पारमार्थिक अद्वैत सिद्धान्त ज्यों का त्यों बना रहता है। पारमार्थिक अद्वैत ज्ञान होने पर यदि भजनोपयोगी द्वैत मान कर भगवान में भक्ति की जाती है तो ऐसी भक्ति सैकड़ों मुक्तियों से भी अधिकाधिक श्रेष्ठ है।

‘पारमार्थिकमद्वैतं द्वैतं भजन हेतवे।
तादृशी यदि भक्तिः स्यात्सा तु मुक्तिशताधिका।
भक्तयर्थ भावितं द्वैतमद्वैतादपि सुन्दरम्।’

अर्थात् प्रत्येक चैतन्याभिन्न पर-ब्रह्म का विज्ञान होने के पूर्व द्वैत बन्धन का कारण है किन्तु विज्ञान के पश्चात् भेद-मोह के निवृत्त हो जाने पर मुक्ति के लिए भावित द्वैत अद्वैत से भी श्रेयस् है। ‘गुप्त प्रेम सखि सदा दुरैये’ प्रेम की रस-स्वरूपता को बनाये रखने के लिए उसका गोपन परमावश्यक है। एतावता अपनी हृच्छायाग्नि-उपशमन की प्रार्थना के ब्याज से ही गोपांगनाएँ भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र आनन्दकन्द की आन्तरिक भावनाओं को उत्तेजित करना चाहती हैं। वे कह रही हैं कि हे कान्त! हम लोग स्वयं ही कंदर्पं-व्यथा से व्यथित हैं; अतः आप अपने इन कोमल चरणारविन्दों को हमारे उरस्थल पर धारण करें। अपने दिव्य सौन्दर्य, माधुर्य से, दिव्य अंगरागादिक एवं भूषण वसनादिकों से अपने प्रियतम श्रीकृष्ण परमात्मा का मनोरंजन करना ही उनकी एकमात्र अभिलाषा है।
‘प्रणतदेहिनां पापकर्शनं तृणचरानुगं श्रीनिकेतनं’ जैसे अपनी उक्ति में गोपांगनाओं ने भगवान् श्रीकृष्ण के प्रति तीन विशेषणों का प्रयोग किया है। इन विभिन्न विशेषणों का प्रयोजन भी भिन्न-भिन्न है। सामान्य प्रयोजन है ‘प्रणतदेहिनां पापकर्शनं’ प्रणत-प्राणी के सम्पूण्र पापों का कर्शन, अपनोदन। द्वितीय प्रयोजन है विशेष भगवदीय अनुकम्पा; अपनी विशेष अनुकम्पावशात्- ‘तृणचरानुगं’ तृणचर पशुओं के पालन-हेतु ही निरावरण चरणों में उनका भी अनुसरण करते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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