गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 6एक सखा के द्वारा अपने सखा के प्रति छल-छद्म-शून्य प्रतारणा-रहित अभिव्यन्जना ही उचित है। हम तो आपकी सखी जन हैं अतः हम आपके प्रति छल-छद्म-शून्य विज्ञापन ही करती हैं। ‘नः अस्मान् भज, भवत् किंकरीः’ हम आपकी किंकरी हैं अतः आप भी हमारा भजन करें। भगवद्-वचन है, ‘ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।’[1] अर्थात्, भक्त जिस भाव से मुझे भजता है उसी भाव से मैं भी भक्त को भजता हूँ। गोपांगनाएँ कह रही हैं, ‘हे सखे! अपनी प्रतिज्ञानुसार ही आप हमारा भजन’ हमारा अनुसरण करें। जो आपके प्रति कान्तभाववती हैं उनका कान्ताभाव से, जो परमप्रेयान् भाववती हैं उनका परम-प्रेयसी-भाव से अनुकरण करें।’ हे सखे! आपके इस अवतार का सामान्य हेतु ‘व्रजजनार्तिहन्’ व्रजवासियों की आर्ति का हनन भी है तथापि हम प्रेयसी-जनों की पीड़ा का उपशमन ही विशेष हेतु हैं व्रजवासियों के अन्तर्गत हम सीमन्तिनी जनों की आर्ति का भी हनन हुआ है तथापि ‘परित्राणाय साधूनां’ जिनको आपके मुखचन्द्र-दर्शन में ही व्यसन हो गया है, जिनके लिए आपकी सत्य-संकल्पता, सर्वज्ञता, सर्वशक्तिमत्ता कुण्ठितप्राय है, जो केवल आपके सौन्दर्य-सौरस्य-सौगन्ध्य-सुधा जलानधि, दिव्य मंगलमय स्वरूप की मधुरिमा एवं आपके अधर-सुधा-रस में ही आसक्त हैं ऐसे जनों की आर्ति का हनन एवं परित्राण हेतु ‘नः अस्मान् भज’ हे सखे! आप हमारा अनुसरण करें। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गीता 4। 11