गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 5‘कृष्णोपनिषद’ आदि में कृष्ण के दिव्य चरित्रों का तथा ‘राम तापनीय’, ‘रामरहस्य’ आदि में राघवेन्द्र रामभद्र के दिव्य चरित्रों का सांगोपांग वर्णन है। श्रुतिरूपा गोपांगनाएँ कह रही हैं, ‘निःश्रेयसार्थयिवृष्णिकुले अवतीर्णो यः स वृष्णिधुर्यः।’ प्राणिमात्र के कल्याण के लिए, वृष्णि-कुल में भगवान् कृष्णचन्द्र परमानन्दकन्द का अवतरण हुआ। लोकैषणा, पुत्रैषणा, वित्तैषणा, सर्वप्रकारेण एषणा-विनिर्मुक्त, आप्तकाम, पूर्णकाम, आत्माराम, उच्च अधिकारी तो निर्गुण, निराकार, निरतिशय परात्पर परब्रह्म अन्तर्यामी स्वरूप के साक्षात्कार से ही सदा कल्याण का भागी होता है परन्तु जन-सामान्य के कल्याण हेतु भगवत्-अवतरण परम आवश्यक हैं क्योंकि सगुण साकार अवतार-विशिष्ट में की गई परम पावन लीलाओं एवं दिव्य चरित्रों के वर्णन एवं श्रवण से भी प्राणिमात्र का परम कल्याण होता है। ‘यो ब्रह्माणं विदधाति पूर्वं, यो वै वेदांश्च प्रहिणोति तस्मै। अर्थात, जो पहले ब्रह्मा को बनाकर उनके लिए वेदराशि को प्रेषित करते हैं, उस आतमबुद्धि को प्रकाशित, उद्भूत करने वाला जो ईश्वर है उसकी मैं शरण हो रहा हूँ, मैं उसको अपना आश्रय स्वीकार करता हूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्वेताश्वतर 6। 18