गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 4भक्त प्रवर ब्रह्मा द्वारा विश्व-गुप्ति, विश्व-रक्षण-हेतु विशेषतः प्रार्थित होकर सच्चिदानन्दघन, सगुण, साकार स्वरूप में आविर्भूत हुए हैं। अतः हमारे गुण-दोषों का विचार न करते हुए हमारा संत्राण करें; हमारे संत्राण-हेतु आप विशेषतः दीक्षित हैं।’ ‘देवक्यां देवरूपिण्यां विष्णुः सर्वगुहाशयः। जैसे प्राची दिशा में पुष्कल, पूर्णचन्द्र का उदय होता है वैसे ही देवकी रूप प्राची दिशा में श्रीकृष्णचन्द्रस्वरूप पूर्ण चन्द्र का उदय हुआ। बंगाली कहते हैं-जन्माष्टमी के दिन देवकी रूप प्राची दिशा से श्याम पूर्णचन्द्र का उदय हुआ। इस पाद का निषेधात्मक अर्थ भी है। ‘भवान् गोपिकानां नः श्वश्रवा नन्दनः न इति न खलु’ हे सखे! ऐसा भी नहीं कि आप हमारी श्वश्रू-गोपांगना के पुत्र नहीं हैं; तात्पर्य कि हमारे श्वश्रू-पुत्र, हमारे पतिदेव ही हैं। जिस समय ब्रह्म ने ग्वाल-बालों का अपहरण किया था उस समय आप ही सम्पूर्ण ग्वालबालों के रूप में प्रकट हुए। ‘यावद्वत्सपवत्सकाल्पकवपुः[2]‘सर्व विष्णुमयं जगत्’ जैसे वेद-वाक्य को साकाररूप में प्रत्यक्ष करने हेतु ही आप जड़-चेतनात्मक सर्वस्वरूप में प्रकट हो गए। ग्वाल-बाल मंडली ब्रह्म की माया से मोहित होकर मायामयी कन्दरा में वर्षपर्यन्त विलीन रही। |