गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 3‘जथा अनेक बेष धरि नृत्य करइ नट कोइ। अस्तु, परात्पर परब्रह्म प्रभु ही राघवेन्द्र रामचन्द्र स्वरूप में भी, व्रजेन्द्रनन्दन श्रीकृष्णचन्द्र स्वरूप में भी प्रकट हुए। गोस्वामीजी कहते हैं- जासु अंस उपजहिं गुनखानी। अगनित लच्छि उमा ब्रह्मानी। अनन्त ब्रह्माण्डनायक परात्पर परब्रह्म प्रभु से ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड एवं उनके तत् तत् ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र तथा उमा रमा ब्रह्माणी आदि प्रादुर्भूत होते हैं। शंकराचार्यजी कहते हैं- ‘गोपान् विष्णुयुतानदर्शयदजं विष्णूनशेषांश्च यः।’ अनन्त, अखण्ड, परात्पर, कार्य-कारणातीत परब्रह्म ही कार्यरूप ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि विभिन्न रूपों में प्रकट हो जाते हैं; वह परात्पर कार्यकारणातीत परब्रह्म प्रभु ही ‘रामायण’ के महातात्पर्य का विषय राघवेन्द्र रामचन्द्र एवं जनकनन्दिनी जानकी हैं; वही सच्चिदानन्द तत्त्व ‘भागवत’ के अनुसार व्रजेन्द्रनन्दन श्रीकृष्ण हैं; ‘विष्णुपुराण’ के अनुसार श्रीमन्नारायण विष्णु हैं; ‘स्कन्द’ एवं ‘शिवपुराण’ के अनुसार भूतभावन, विश्वनाथ भगवान् शिव हैं; वस्तु-तत्त्व एक होते हुए भी रूप विभिन्न हैं। ‘सेवक स्वामि सखा सिय-पिय के।’ कहकर गोस्वामीजी ने भी शिव का राम के साथ अभेद स्थापित किया है। अल्पश्रुत अल्पज्ञ में ऐसो अभेद-भावना सम्भव नहीं हो पाती और बहुश्रुत खल भी अभेद को नहीं समझ पाते फलतः दोनों ही विपरीतार्थ की कल्पना कर लेते हैं। |