गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 137

Prev.png

गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 3

जहाँ अनधिगत-गन्तृत्व न होने पर ज्ञात-ज्ञापकता होती है वहाँ अनुवादकत्व लक्षण अप्रामाण्य होता है। अष्ट-दोष से दूषित विकल्प जिस पक्ष में होता है वहाँ अननुष्ठापकत्व लक्षण अप्रामाण्य होता है क्योंकि वह स्वार्थ का अनुष्ठान नहीं करा सकता। निष्कर्ष यह है कि वेद-वचनों द्वारा परब्रह्म का प्रतिपादन होने पर भी जब तक परब्रह्म स्वरूप का साक्षात्कार, बोध, प्रबोध तथा अविद्या एवं तत् कार्यात्मक प्रपन्च का अपनोदन न हो तो वेदान्त में भी अप्रामाण्यापत्ति हो जाती है। तात्पर्य यह कि बोधकशास्त्र द्वारा बोध न होने पर यह अप्रमाण हो जाता है। श्रुतियों का प्रामाण्य स्थापित होना ही उनका रक्षण है। भगवत्-साक्षात्कार से ही श्रुतियों का रक्षण होता है। भागवत-शास्त्र के आधार पर भगवत्-साक्षात्कार होने पर ही उनकी प्रामाणिकता मान्य हो सकती है। इसी तरह भगवान् राघवेन्द्र रामचन्द्र के अपरोक्ष-ज्ञान होने से रामायण की प्रामाणिकता भी मान्य हो सकती है। तात्पर्य कि बोधक-शास्त्रों का अप्रामाण्य ही उनका हनन किंवा वध है; सच्चिदानन्दघन परात्पर परब्रह्म प्रभु के साक्षात्कार से ही मन्त्र-ब्राह्मणात्मक वेद राशि का, सम्पूर्ण श्रुतियों का प्रामाण्य सुस्थापित हो जाता है। एतावता श्रुतिरूपा गोपांगनाएँ भगवान श्रीकृष्ण से आविर्भूत होकर रक्षण करने हेतु प्रार्थना कर रही हैं।

काम-क्रोध-मदादि दोषों के कारण भगवत्-दर्शन असम्भव हो जाता है। गोपांगनाएँ अनुभव करती हैं कि भगवान् श्रीकृष्ण कह रहे हैं कि हे गोपांगनाओ! तुम लोगों में अहंकार का उदय हुआ कि अनन्तकोटि ब्रह्माण्डनायक अखिलेश्वर प्रभु हमारे वशीभूत हो दारु-यन्त्रवत् क्रीड़ा कर रहे हैं अतः मैं अन्तर्धान हो गया। गोपांगनाएँ प्रार्थना कर रही हैं-“है नाथ! ‘नैवाश्रितेषु महतां गुणदोषशंका’ आश्रितों के गुण-दोष विचारणीय नहीं होते।

‘दोषाकरोऽपि, कुटिलोऽपि कलंकितोऽपि
मित्रावसानसमये विहितोदयोऽपि।
चन्द्रस्तथापि हरवल्लभतामुपैति
नैवाश्रितेषु गुणदोषविचारणा स्यात्।।”[1]

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सु.र. व. 3। 105। 200

संबंधित लेख

गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः