गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 13

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

हे चकवी! तू आँखे बन्द करके किसे प्रणय का आमन्त्रण दे रही है? क्या तू भी हमारे समान ही श्रीकृष्ण के चरणों पर समर्पित की हुई पुष्पमाला को पहनना चाह रही हो? रे समुद्र! तू क्यों गरज रहा है? दिग्दिगन्त को प्रतिध्वनित कर देनेवाली तुम्हारी गम्भीर ध्वनि का क्या तात्पर्य है? क्या श्रीकृष्ण ने हमारी ही भाँति तुम्हारा भी कुछ छीन लिया है? अरे चन्द्रमा! तेरी क्या दशा हो रही है? आज रजनी को तू अपने करों से रंग उड़ेलकर क्यों नही रँग देता? क्या तू भी श्रीकृष्ण की मीठी-मीठी बातों में आकर अपना सर्वस्व खो चुका है? हे मलयानिल! हमने तो तुम्हारा कोई अपराध नहीं किया है। फिर भी तुम हमारे अंग-प्रत्यंग का स्पर्श करके हृदय को क्यों गुदगुदा रहे हो? उसे तो यों ही श्रीकृष्ण की तिरछी चितवन ने टूक-टूक कर दिया है। अरे घनश्याम के समान श्यामल मेघ! तू तो उसका सखा है न? उनका ध्यान करते-करते तू भी ऐसा ही हो गया है। ये तेरी बूँदें नहीं, तेरे प्रेम के तेरे आँसू हैं। अब क्यों रोता है? उनसे प्रेम करने का फल भोग ले। अरे पर्वत! तुम्हारे इस गम्भीर, मौन और अचन्चल स्थिरता का यही अर्थ है न, कि तुम हमारी ही भाँति अपने शिखरों पर उनके चरणों का स्पर्श चाह रहे हो? नदियो! क्या तुम वियोगिनी हो? हाँ, तभी तो तुम हमारी ही भाँति कृश हो रही हो। अरे हंस! आओ, आओ, तुम्हारा स्वागत है। इस आसन पर बैठो, दूध पीयो, कहो उनका कुशल-मंगल अच्छे तो हैं? वे क्या कभी हमारा स्मरण करते हैं? हम वहाँ नहीं जायेंगी। क्या वे हमारे पास नहीं आयेंगे? उसी तरह गोपियों का हृदय और उनका प्रेम अनिर्वचनीय है। वे गोपियाँ प्रेममय हैं, श्रीकृष्णमय हैं, अमृतमय हैं। उनका हृदय, उनका प्रेम, उनके भाव का अमृतमय स्त्रोत कभी-कभी स्वयं वाणी के द्वारा बाहर निकल आता है। वे जब बोलना चाहती हैं, तब बोला नहीं जाता, जब मौन रहना चाहती हैं, तब बोल जाती हैं। उनके दिव्य भाव दर्शनीय ही हैं-

हे सखी! जब सायंकाल हो जाता है, गायें व्रज में आने लगती हैं, उनके पीछे-पीछे ग्वाल-बालों के साथ बाँसुरी बजाते हुए श्रीकृष्ण और बलराम व्रज में प्रवेश करते हैं, तब उनकी स्नेहभरी चितवन का रस जो लेता है, उसी का जीवन सफल है। उसी की आँखे धन्य हैं। कितना विचित्र वेष रहता है उनका-आम्र-मंजरियाँ, कोमल-कोमल पल्लव, पुष्पों के स्तबक और कमलों की माला! गोप-बालकों के बीच में गाते हुए वे एक श्रेष्ठ नट के समान जान पड़ते हैं।

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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