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श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
रासलीला-चिन्तन-2
कहते हैं कि भगवान का योग शब्द का अर्थ है भगवान का ऐश्वर्य और ऐश्वर्य की जो कृपा है उसका नाम है योगमाया-योग माने ऐश्वर्य, माया माने कृपा। श्रीकृष्ण की लीला में यह ऐश्वर्य युक्त कृपा ही नाना प्रकारों से अपना काम करती है। पूतना राक्षसी को माँ की गति दे दी। वहाँ से लेकर और जितनी भी लीलाएँ भगवान ने की वहाँ-वहाँ पर योगमाया ने-ऐश्वर्य-कृपा ने प्रकट होकर सारा काम यों बना दिया कि कहीं किसी प्रकार की अड़चन आयी ही नहीं। मानों पहले से बना बनाया तैयार। इस ऐश्वर्ययुक्त कृपा का रासलीला में पूर्ण विकास दीखता है प्रथम से अन्त तक। श्रीभगवान ने जब अनुरागिणी व्रजबालाओं पर कृपा करके उनके साथ रासक्रीड़ा करने की इच्छा की और उनको अपने-अपने घरों से वन भूमि में बुलाने के लिये वंशीनाद किया तो भगवान ने यह जो वंशीनाद किया कृपा करके; यह अगर सभी सुन देते तो भगवान के पास इन सबका आना ही मुश्किल हो जाता। भगवान की कृपा ने वहाँ ऐश्वर्य प्रकाश करके वंशीनाद केवल सुनाया गोपरमणियों को ही। वंशी बजी सबके लिये लेकिन उनके कानों को अवरूद्ध कर दिया ऐश्वर्य शक्ति ने। यदि सब कोई सुनते तो एक आफत और होती। यह वंशी तो सबको मोहित करने वाली है। तो वंशीनाद को सुनकर सभी घरवाले चल पड़तें, सारा व्रज ही वहाँ उमड़ पड़ता। तो फिर यह लीला होती ही नहीं। ऐश्वर्य प्रकाश हुआ फिर सब इनके पति-पुत्रों ने निवारण किया-रोका परन्तु जब जाने लगीं तो भूल गये और अपने-अपने घरों को वापिस लौट आये। नहीं तो साथ ही चले चलते। पीछे-पीछे दौड़ते तो काम नहीं बनता। रासस्थली में तो योगमाया की ऐश्वर्य शक्ति ने पूर्ण प्रकाश किया। यह भगवान ने रासनृत्य में प्रवृत्त होकर के प्रत्येक गोपी का हाथ धारण कर लिया। दो-दो गोपी बीच में एक-एक कृष्ण। अनन्त गोपिकाओं में अनन्त कृष्ण रूप से प्रकट होकर के भगवान ने गोपिकाओं की मनोवांक्षा पूर्ण की। जितनी गोपांगनाएँ थीं रासस्थली में उतनी मूर्ति प्रकट करके भगवान ने रास-नृत्य किया। यह ऐश्वर्ययुक्त कृपा का पूर्ण विकास है। योगमाया शब्द पर विचार करने पर भगवान की लीला के और वैभव भी सामने आते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीमद्भा. 10।33।20
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