गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 11गोपांगनाएँ तत्-सुख-सुखित्व भाववती हैं। सामान्यतः लोक में स्व-सुख सुखित्व-भाव ही प्रधान होता है परन्तु गोपांगनाओं को स्वसुख की कल्पना भी नहीं होती; उसका अशन, वसन, अलंकार यहाँ तक कि जीवन भी प्रियतम-प्रीत्यर्थ ही है अतः जिस समय भगवत् परिरम्भण काल में अतिशय प्रेमोद्रेक के कारण उनके अंगप्रत्येंग रोमांच-कण्टकित हो जाते हैं उस समय भी अपने हृतापोपशमनार्थ निरतिशय सुकोमल भगवत् पादारविन्दों को अपने उरोजों की अतिशय कठोरता का विचार कर अपने उरस्थल पर भी विन्यस्त नहीं करती क्योंकि उरोजों की कठोरता से सुकोमल चरणारविन्दों में आघात लग जाने की आशंका होती है। यह तत्-सुखसुखित्व भाव ही व्रजबालाओं का वैशिष्ट्य हैं। अथवा, गोपांगनाएँ, अपने उरस्थल में मनोज रूप बड़वाग्नि का अनुभव कर अपने उरोजों पर भगवत् पादारविन्दों का विन्यास नहीं करतीं। मनोरूप बड़वाग्नि से हृत्-स्थित आनन्द-समुद्र दग्ध हो रहा है; भगत् चरणारविन्द निःसृत भगवती गंगा द्वारा यह कामरूप बड़वानल भी उपशमित हो जाता है। कथा है कि कभी दुर्दैववशात् ब्राह्मण एवं क्षत्रियों में परस्पर अत्यंत गंभीर विरोध चल रहा था; यह विरोध इतना भयानक हो गया कि क्षत्रियगण ब्राह्मण स्त्रियों के गर्भगत शिशुओं को भी हनन करने लगे। किसी ब्राह्मणी ने अपने गर्भगत शिशु की रक्षा हेतु उसे अपने उरु में धारण कर लिया; तब भी येन केन प्रकारेण क्षत्रियों ने तथ्य को जानकर उसको मारना चाहा; वह ब्राह्मणी व्याकुल हो वन प्रान्तर की ओर भाग चली; इस परिश्रम के कारण वह गर्भ उसके उरु से भी निकल पड़ा; यह बालक ही महर्षि और्व नाम से प्रख्यात हुआ। जन्म लेते ही महर्षि और्व भृगुवंश के संताप से अत्यन्त क्रुद्ध हो अपने शाप द्वारा ब्रह्म-विष्णु-महेश सहित लोक-लोकान्तरों का विध्वंस कर देने के लिए उद्यत हुए। महर्षि और्व के संकल्प से संपूर्ण विश्व प्रकम्पित हो गया; ऐसे समय महर्षि और्व के पितृगणों ने प्रकट होकर उनको प्रबोध कराया और विश्व की रक्षा की। महर्षि और्व विश्व विनाश हेतु संकल्प कर चुके थे अतः पितृगणों ने उनको आदेश दिया कि-‘आपो वै लोकाः’ लोक-लोकान्तर जलात्मक है, अतः तुम अपने संकल्पित जल को विश्व-व्याप्त जल पर ही छोड़ दो।’ वह और्वाग ही बड़वाग्नि रूप से जल में प्रविष्ट होकर सम्पूर्ण समुद्र का ही शोषण करने लगी। बड़वाग्नि से शोषित होते हुए समुद्र की रक्षा हेतु ही भगवद्-पादारविन्द से भगवती गंगा प्रवाहित हुई। भगवती गंगा की शक्ति से और्वाग्नि प्रशमित हुई। |