गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 10नित्य-निकुंजेश्वरी, श्री राधारानी के लिए स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण ही चिंतित हों ललिता आदि से कह रहे हैं- ‘पूर्वानुरागगलितां मम लम्भनेऽपि लोकापवाददलितामथ मद्वियुक्तौ। अर्थात, ले ललिते! यह राधारानी तो मेरे पूर्वराग में ही गलित हो गई; मेरे सम्मिलन का आनन्दाद्रेक भी लोकापवाद के भीषण संताप से प्रभावित है; मेरे वियोग में तो दवानल दग्धा यह जाति लता, यूथिका लता की तरह मेरे वियोगजन्य तीव्रताप से दग्ध हो भस्मीभूत हो जाती है।हे सखी! ललिते! बताओ तो मैं इनको किस प्रकार सान्त्वना दूँ? तात्पर्य कि कुल-ललना के लिए लोकापवाद का ताप इतना दुस्त्यज होता है कि प्रियतम सम्मिलन के आनन्दोद्रेक में भी उसका भान बना ही रहता है। ‘जन्म कर्म च दिव्यमेवं योमेवेत्ति तत्त्वतः। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (श्री0 गी0 4/9)