गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 10अम्बा पार्वती भी कहती हैंः- ‘महादेव अवगुण-भवन, विष्णु सकल गुणधाम।
एक भक्त हमको मिले, वे कहने लगे ‘महाराज! हमारे शिव हैं न, उन्हीं से हमको मिला दीजिए- न उन से कुछ कम, न उनसे अधिक-बस, हमारे शिव से ही हमाको कृपा कर मिला दीजिए। यह अन्यूनातिरिक्त-भाव ही अत्यन्त स्तुत्य है। भगवान श्रीकृष्ण के प्रेम में तन्मय ये व्रजसीमन्तनीजन दारुण लोकापवाद के प्रति सर्वथा उदासीन हैं-‘अपने पिया के मैं अंक लगौंगी कलंक लगे तो लगै मोहि आली।’ इस अविचल कृष्ण-निष्ठा, लक्ष्य-निष्ठा के कारण ही गोपांगनाएँ सर्वबन्द्या हैं। मीरा ने भी गाया है- ‘मीरां गिरिधर हाथ बिकानी लोग कहैं बिगरी।’ भागवत की कथा है श्री गर्गाचार्यजी ने व्रज-वासियों को बताया था कि यदि एक बार भी व्रज-युवतियों को कृष्ण-सम्मिलन प्राप्त हुआ तो सम्पूर्ण व्रजवासियों को सौ वर्ष पर्यन्त कृष्ण-वियोग सहन करना पड़ेगा एतावता गुरुजनों द्वारा गोपकन्याओं को कृष्ण दर्शन एवं संस्पर्श के लिए बारम्बार वर्जन किया गया परन्तु जैसे प्रवाह के अवरोध से गति का वेग अधिकाधिक वृद्धिंगत होता जाता है, वैसे ही, गोपांगनाओं का कृष्ण-प्रेम भी गुरुजनों द्वारा बारम्बर अवरोध किये जाने पर अधिकाधिक प्रस्फुरित हुआ। |