गोपी गीत -करपात्री महाराजऐसे परमपवित्र प्रेम की पराकाष्ठा को प्राप्त हुए गीत की व्याख्या, उसका मार्मिक रहस्य बताना जिस-किसी का काम नहीं है। उसे तो वैसा ही भक्तिरसाप्लावित, वीतराग, वैराग्य साम्राज्य सिंहासनारूढ़ श्रीकृष्णानुगृहीत महान पुरुष ही अपनी पवित्र रसमयी वाणी से अभिव्यक्त कर सकता है। इस युग में एकमात्र महापुरुष, परम तीव्र वैराग्य सम्पन्न, धर्म सम्राट, साक्षात शुकावतार, पूज्यपाद, प्रातःस्मरणीय श्री 108 करपात्रस्वामिचरण ही गोपी-गीत जैसे लोकोत्तर गीत के रहस्य की अपनी वैदुष्यपूर्ण रसमयी वाणी से अभिव्यक्ति करने में समर्थ हो सकते हैं। हमारे आराध्यचरण महाराज श्रीस्वामीजी ने भक्तजनकल्याण की कामना से समय-समय पर जो प्रवचन दिये, उन्हीं का प्रकाशन इस ग्रंथ के रूप में महाराजश्रीचरणों के परम कृपापात्र तथा उच्चकोटि के विद्वान् सर्वशास्त्रनिष्णात श्री मार्कण्डेय ब्रह्मचारीजी ने बड़े मनोयोग और वैदुष्य के साथ किया है जिसे पढ़कर पवित्रान्तःकरण के भक्त लोग अवश्य ही भगवान् श्रीकृष्ण के अनुग्रह हो प्राप्त होंगे, यह मेरा विश्वास है। मेरे आराध्य गुरुचरण, पूज्यपाद, प्रातःस्मरणीय श्रीकरपात्रस्वामिचरणों की हार्दिक अनुपम अनुकम्पा के फलस्वरूप ही विद्वन्मूर्धन्य श्री मार्कण्डेय ब्रह्मचारीजी के मुख से मुझे गोपी-गीत जैसे लोकोत्तर भावपूर्ण ग्रन्थ पर भूमिका लिखने की आज्ञा प्राप्त हुई। उनकी अनुल्लंघनीय आज्ञा को वरदान मानकर मैं अपनी अल्पतम बुद्धि के अनुसार जो कुछ लिख सका, वह महाराजश्री के आशीर्वाद का ही पवित्र फल है। अन्त में हे गुरुदेवचरण! मुझ जैसे अपनी दीन-हीन-मूढ़ शिष्य को अपने अमोघ कृपापूर्ण आशीर्वाद देकर अपना वरदहस्त मेरे शिर पर रखकर मेरा उद्धार कर दें, यही प्रणामपूर्वक भक्तिपुरःसर प्रार्थना है। इति शम।-गजाननशास्त्रि मुसलगाँवकर |