बलदेव विद्याभूषण
| |
पूरा नाम | बलदेव विद्याभूषण |
जन्म भूमि | बंगाल |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | वृन्दावन |
मुख्य रचनाएँ | 'गोविन्दभाष्य',सिद्धान्तरत्न या भाष्यपीठक, प्रमेयरत्नावली, वेदान्तस्यमन्तक, गीताभाष्य, दशोपनिषद-भाष्य, स्तवावली और विष्णुसहस्त्रनामभाष्य। |
प्रसिद्धि | कृष्णभक्त तथा दार्शनिक विद्वान। |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | बलदेव विद्याभूषण राधादामोदर के शिष्य थे। बाद में उन्होंने विश्वनाथ चक्रवर्ती को अपना गुरु स्वीकार कर लिया था। |
बलदेव विद्याभूषण राधादामोदर के शिष्य थे। उन्होंने अन्तिम समय में वृन्दावन जाकर विश्वनाथ चक्रवर्ती का शिष्यत्व ग्रहण कर लिया था। बलदेव विद्याभूषण ने शास्त्राध्ययन पीताम्बरदास के पास रहकर किया। इन्होंने कई प्रसिद्ध ग्रंथों की रचना की थी। ये बड़े प्रेमी भक्त तथा दार्शनिक विद्वान थे।[1]
परिचय
बलदेव विद्याभूषण का जन्म बंगाल में हुआ था। वे 18वीं शताब्दी में हुए थे। उनके गुरु का नाम श्रीराधादामोदर था, यद्यपि बाद के समय में उन्होंने विश्वनाथ चक्रवर्ती को अपना गुरु स्वीकार किया था। श्रीबलदेव श्यामानन्द के शिष्य रसिकानन्द की शिष्य-परम्परा में ये चौथे पुरुष थे।
गोविन्दभाष्य की रचना
वेदान्त सूत्र पर श्रीगौड़ीय सम्प्रदाय का अपना कोई भाष्य नहीं था। एक बार आचार्य बलदेव ने किसी विद्वान के साथ शास्त्रार्थ किया। शास्त्रार्थ के बाद पण्डित ने पूछा- "आप जिस मत का प्रतिपादन कर रहे हैं, वह किस सम्प्रदाय के भाष्य द्वारा अनुमोदित है?" इसके बाद एक मास के भीतर श्रीबलदेव ने भगवान गोविन्ददेव के स्वप्नादेश के अनुसार भाष्य की रचना कर डाली और इसी से उसका नाम भगवान गोविन्द के नाम पर ‘गोविन्दभाष्य‘ रखा। इस भाष्य में ‘अचिन्त्य-भेदाभेदवाद’ की व्याख्या की गयी है।
अन्य रचनाएँ
श्रीबलदेव ने और भी बहुत-से ग्रन्थों की रचना की, जिनमें निम्नलिखित रचनाएँ अत्यधिक प्रसिद्ध हैं-
- सिद्धान्तरत्न या भाष्यपीठक
- प्रमेयरत्नावली
- वेदान्तस्यमन्तक
- गीताभाष्य
- दशोपनिषद-भाष्य
- स्तवावली
- विष्णुसहस्त्रनामभाष्य
ये सब ग्रन्थ गौड़ीय मत के अनुसार लिखे गये हैं। श्रीबलदेव जी बहुत बड़े प्रेमी भक्त और महान दार्शनिक विद्वान थे।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 पुस्तक- भक्त चरितांक | प्रकाशक- गीता प्रेस, गोरखपुर | विक्रमी संवत- 2071 (वर्ष-2014) | पृष्ठ संख्या- 590
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज