हरिगीता अध्याय 2:26-30

श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश'

अध्याय 2 पद 26-30

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यदि मानते हो नित्य मरता, जन्मता रहता यहीं।
तो भी महाबाहो! उचित ऐसी कभी चिन्ता नहीं॥26॥

जन्मे हुए मरते, मरे निश्चय जनम लेते कहीं।
ऐसी अटल जो बात है उसकी उचित चिन्ता नहीं॥27॥

अव्यक्त प्राणी आदि में हैं मध्य में दिखते सभी।
फिर अन्त में अव्यक्त, क्या इसकी उचित चिन्ता कभी॥28॥

कुछ देखते आश्चर्य से, आश्चर्यवत कहते कहीं।
कोई सुने आश्चर्यवत, पहिचानता फिर भी नहीं॥29॥

सारे शरीरों में अमर, आत्मा न बध होता किये।
फिर प्राणियों का शोक यों तुमको न करना चाहिये॥30॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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