विषय सूची 1 श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश' 2 अध्याय 15 पद 6-10 3 टीका टिप्पणी और संदर्भ 4 संबंधित लेख श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश' अध्याय 15 पद 6-10 जिसमें न सूर्य्य प्रकाश चन्द्र न आग ही का काम है॥ लौटे न जन जिसमें पहुँच मेरा वही पर धाम है॥6॥ इस लोक में मेरा सनातन अंश है यह जीव ही॥ मन के सहित छः प्रकृतिवासी खींचता इन्द्रिय वही॥7॥ जब जीव लेता देह अथवा त्यागता सम्बन्ध को॥ करता ग्रहण इनको सुमन से वायु जैसे गन्ध को॥8॥ रसना, त्वचा, दृग, कान एवं नाक, मन-आश्रय लिये॥ यह जीव सब सेवन किया करता विषय निर्मित किये॥9॥ जाते हुए तन त्याग, रहते, भोगते गुणयुक्त भी॥ जानें न इसको मूढ़ मानव, जानते ज्ञानी सभी ॥10॥ टीका टिप्पणी और संदर्भ संबंधित लेख देखें • वार्ता • बदलेंहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश' पहला अध्याय (1) · द्वितीय अध्याय (2) · तृतीय अध्याय (3) · चतुर्थ अध्याय (4) · पंचम अध्याय (5) · षष्टम अध्याय (6) · सातवाँ अध्याय (7) · आठवाँ अध्याय (8) · नौवाँ अध्याय (9) · दसवाँ अध्याय (10) · ग्यारहवाँ अध्याय (11) · बारहवाँ अध्याय (12) · तेरहवाँ अध्याय (13) · चौदहवाँ अध्याय (14) · पंद्रहवाँ अध्याय (15) · सोलहवाँ अध्याय (16) · सत्रहवाँ अध्याय (17) · अठारहवाँ अध्याय (18) वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ ऋ ॠ ऑ श्र अः